बड़ा गुमान था कि,
चेहरा देख पहचान लेते हैं लोगों को .
तब हार गए पढ़ने में चेहरे.
खा गए धोखा ।
जब चेहरे पे लगे थे मुखौटे… …
एक पे एक।
बड़ा गुमान था कि,
चेहरा देख पहचान लेते हैं लोगों को .
तब हार गए पढ़ने में चेहरे.
खा गए धोखा ।
जब चेहरे पे लगे थे मुखौटे… …
एक पे एक।
चिड़ियों की चहक सहर…सवेरा… ले कर आती है.
नीड़ को लौटते परिंदे शाम को ख़ुशनुमा बनाते हैं.
ढलते सूरज से रंग उधार लिए सिंदूरी शाम चुपके से ढल जाती.
फिर निकल आता है शाम का सितारा.
पर यादों की वह भीगी शाम उधार हीं रह जाती है,
भीगीं आँखों के साथ.
अब अँधेरे से डर नहीं लगता.
अँधेरा हीं रुहानी लगता है.
स्याह स्याही, सफ़ेद पन्नों पर कई
कहानियाँ, कवितायें लिख जाती हैं.
वैसे हीं अँधेरे की रोशनाई में कितने
सितारे, ख़्वाब, अफ़साने दिख जाते हैं.
जिसमें कुछ अपना सा लगता है .
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