अब अँधेरे से डर नहीं लगता.
अँधेरा हीं रुहानी लगता है.
स्याह स्याही, सफ़ेद पन्नों पर कई
कहानियाँ, कवितायें लिख जाती हैं.
वैसे हीं अँधेरे की रोशनाई में कितने
सितारे, ख़्वाब, अफ़साने दिख जाते हैं.
जिसमें कुछ अपना सा लगता है .
अब अँधेरे से डर नहीं लगता.
अँधेरा हीं रुहानी लगता है.
स्याह स्याही, सफ़ेद पन्नों पर कई
कहानियाँ, कवितायें लिख जाती हैं.
वैसे हीं अँधेरे की रोशनाई में कितने
सितारे, ख़्वाब, अफ़साने दिख जाते हैं.
जिसमें कुछ अपना सा लगता है .