दाग़

हर ज़ख़्म, हर चोट भर जाती हैं.

सुर्ख़ निशा ….दाग़ छोड़ कर,

याद दिलाने के लिए –

उन राज… को,

उस बात को

भूल ना जाना…..

….रेत पर पड़े निशा सा.

जो दिल के पन्नों पर …,

रूह पर …,

बिन स्याही लिख गए हैं.

वे सबक़ हैं ज़िंदगी के.

11 thoughts on “दाग़

Leave a reply to ShankySalty Cancel reply