दाग़

हर ज़ख़्म, हर चोट भर जाती हैं.

सुर्ख़ निशा ….दाग़ छोड़ कर,

याद दिलाने के लिए –

उन राज… को,

उस बात को

भूल ना जाना…..

….रेत पर पड़े निशा सा.

जो दिल के पन्नों पर …,

रूह पर …,

बिन स्याही लिख गए हैं.

वे सबक़ हैं ज़िंदगी के.

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