
ये ज़िंदगी की धुआँ धुआँ हैं आहें।
दुरूह धोखे औ गर्द भरी राहें।
मसला तो यह है कि अपने हीं
मसलते हैं अपनों के दिलों को।
इतिहास भी देता है गवाहियाँ।
लाख कोशिशों के बाद कृष्ण भी हारे।
चाहे रिश्ते लाख निबाहें,
बदली हो जब अपनों की निगाहें।
एक जंग अपनों से…
रोक नहीं सके सारे।
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