एक उलझन नहीं सुलझ रही।
हैं ज़िंदगी ख़्वाबों में मसरूफ़,
ख़्वाबों की इबादत में मसरूफ़।
है ख़ूबसूरत नशीला वसंत,
कहकशाँ,, चाँद-तारो भरी रातें।
नींद भरी आँखें अपनी
दर्द भरी कहानी किसे सुनायें?
topic by yourquote
एक उलझन नहीं सुलझ रही।
हैं ज़िंदगी ख़्वाबों में मसरूफ़,
ख़्वाबों की इबादत में मसरूफ़।
है ख़ूबसूरत नशीला वसंत,
कहकशाँ,, चाँद-तारो भरी रातें।
नींद भरी आँखें अपनी
दर्द भरी कहानी किसे सुनायें?
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एक दिन मिली राहों में उलझन बेज़ार, थोड़ी नाराज़ सी।
बोली – बड़े एहसान फ़रामोश हो तुम सब।
मैं ज़िंदगी के सबक़ सिखातीं हूँ
और तुम्हें शिकायतें मुझ से है?
जीना तुम्हें नहीं आता,
एक उलझन कम नहीं होती, दूसरी खड़ी कर देते हो।
हाँ! एक बात और सुनो –
ज़िंदगी है तो उलझने हैं! ना रहेगी ज़िंदगी ना रहेंगीं उलझने।
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जो उलझ गई वो है
ज़िंदगी साहब।
सब की है अपनी ज़िंदगी
अपनी राहें।
कई बार सुलझती सी,
कई बार उलझने और
उलझती सी।
ना सज्दा ना जप के
मनके राह सुझाते है।
दिल परेशान है,
ये रास्ते किधर जातें है?
अब उलझनों को
आपस में उलझने
छोड़ दिया है।
यह सोंच कर कि
उन्हें बढ़ाने से
क्या है फ़ायदा?
ज़िंदगी ना उलझी
तो क्या है मज़ा?
प्रश्न बङा कठिन है।
दार्शनिक भी है, तात्त्विक भी है।
पुराना है, शाश्वत-सनातन भी है।
तन अौर आत्मा या कहो रुह और जिस्म !!
इनका रिश्ता है उम्रभर का।
खोज रहें हैं पायें कैसे?
दोनों को एक दूसरे से मिलायें कैसे?
कहतें हैं दोनों साथ हैं।
फिर भी खोज रहें हैं – मैं शरीर हूँ या आत्मा?
चिंतन-मनन से गांठें खोलने की कोशिश में,
अौर उलझने बढ़ जातीं हैं।
मिले उत्तर अौर राहें, तब बताना।
पूरे जीवन साथ-साथ हैं,
पर क्यों मुश्किल है ढूंढ़ पाना ?
इस जीवन यात्रा में…..
एक बात तो बङे अच्छे से समझ आ गई,
अपनी लङाई खुद ही लङनी होती है।
इसमें
शायद ही कोई साथ देता है,
क्योंकि
लोग अपनी लङाईयों अौर उलझनों में उलझने होते हैं।