एक उलझन कम नहीं होती

एक दिन मिली राहों में उलझन बेज़ार, थोड़ी नाराज़ सी।

बोली – बड़े एहसान फ़रामोश हो तुम सब।

मैं ज़िंदगी के सबक़ सिखातीं हूँ

और तुम्हें शिकायतें मुझ से है?

जीना तुम्हें नहीं आता,

एक उलझन कम नहीं होती, दूसरी खड़ी कर देते हो।

हाँ! एक बात और सुनो –

ज़िंदगी है तो उलझने हैं! ना रहेगी ज़िंदगी ना रहेंगीं उलझने।

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हाथ पकड़ कर !

दिया तुमने दर्द औ तकलीफ़।

ज़रूर कुछ सिखा रहे हो,

कुछ बता रहे हो।

डिग्री नहीं, सच्चे सबक़ नज़रों

के सामने ला रहे हो।

जानते हैं गिरने ना दोगे।

हाथ पकड़ कर चलना सीखा रहे हो।