कल तक कंकर था।
तराश कर हीरा बन गया।
कल तक कंकर था।
बहती नर्मदा में ,
तराश कर शंकर बन गया।
तराशे जाने में दर्द है,
चोट है।
पर यह अनमोल बना देता है।
कल तक कंकर था।
तराश कर हीरा बन गया।
कल तक कंकर था।
बहती नर्मदा में ,
तराश कर शंकर बन गया।
तराशे जाने में दर्द है,
चोट है।
पर यह अनमोल बना देता है।
हम
जीवन के माध्यम से हैं
अंदर
रक्तप्रवाह
खुदी हुई
हमारे आंसू
हीरों की तरह
दुख के माध्यम से
और दर्द
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🙏🙏
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Beautiful message 🙏
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Thank you Raksha.
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My pleasure mam 😊
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हम चाहते हैं
नदी में
जीवन की
हीरे को
बहुत चमक रहा है
सितारे
सदा के लिए
बनाया जाना
हम
केवल थोड़े समय के लिए
जीवन की सेवा में
प्रकृति में
दुख और पीड़ा में
और मित्रों
माँ प्रकृति के लिए बाध्य
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🙏🙏
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वाह वाह क्या बात है कंकर से शंकर बन गय
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धन्यवाद!
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जी हाँ रेखा जी। शेर भी तो है:
सुर्ख़रू होता है इंसां
ठोकरें खाने के बाद
रंग लाती है हिना
पत्थर पे पिस जाने के बाद
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बिलकुल ! ज़िंदगी भी यही सबक़ देती रहती है। शुक्रिया जितेंद्र जी।
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True☺
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Thank you Preet!
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