तकरार औ इकरार हो,
शिकवे और गिले भी।
पर ठहराव हो, अपनापन,
भरोसा और सम्मान हो,
ग़र निभाने हैं रिश्ते।
वरना पता भी नहीं चलता।
आहिस्ता-आहिस्ता,
बिन आवाज़
बिखर जातें हैं रिश्ते,
टूटे …. शिकस्ते आईनों
की किर्चियों से।
तकरार औ इकरार हो,
शिकवे और गिले भी।
पर ठहराव हो, अपनापन,
भरोसा और सम्मान हो,
ग़र निभाने हैं रिश्ते।
वरना पता भी नहीं चलता।
आहिस्ता-आहिस्ता,
बिन आवाज़
बिखर जातें हैं रिश्ते,
टूटे …. शिकस्ते आईनों
की किर्चियों से।
दिव्य प्रेम के जश्न,
रास में डूब,
राधा इंद्रधनुष के रंगों से
नहा कर बोली कान्हा से –
हम रंगे हैं रंग में तुम्हारे।
रंग उतारता नहीं कभी तुम्हारा ।
कृष्ण ने कहा- यह रंग नहीं उतरता,
क्योंकि
राधा ही कृष्ण हैं और
कृष्ण ही राधा हैं।
गोपाल सहस्रनाम” के 19वें श्लोक मे वर्णित है कि महादेव जी देवी पार्वती जी को बतातें है कि एक ही शक्ति के दो रूप है – राधा और माधव(श्रीकृष्ण)।यह रहस्य स्वयं श्री कृष्ण ने राधा रानी को भी बताया। अर्थात राधा ही कृष्ण हैं और कृष्ण ही राधा हैं।
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