ज़िंदगी के रंग -228

ज़िंदगी रोज़ एक ना एक

सवाल पूछती है।

सवालों के इस पहेली में

उलझ कर, जवाब ढूँढो।

तो ये सवाल बदल देती है।

ज़िंदगी रोज़ इम्तहान लेती है।

एक से पास हो या ना हो।

दूसरा इम्तहान सामने ला देती है।

अगर खुद ना ले इम्तहान,

तो कुछ लोगों को ज़िंदगी में

इम्तहान बना देती है।

बेज़ार हो पूछा ज़िंदगी से –

ऐसा कब तक चलेगा?

बोली ज़िंदगी – यह तुम्हारा

नहीं हमारा स्कूल है।

तब तक चलेगा ,जब तक है जान।

बस दिल लगा कर सीखते रहो।

समुंदर की लहरें

समुंदर की लहरें,

जमीं का ज़ख़्म भरने की

कोशिश में मानो बार बार

आतीं-जातीं रहतीं है।

वक्त भी घाव भरने की

कोशिश करता रहता है।

ग़र चोट ना भर सका,

तब साथ उसके

जीना सिखा देता है।