कुछ गुल खिले

कुछ गुल खिले और हवा में बिखर गए !
उसकी ख़ुशबुओं को ना पकड़ ,
वे फ़िज़ा में घुल गए।

हम ना किसी के साथ आए थे
ना साथ किसी के जाएँगे।
ना साथ खिले थे , ना साथ मुरझाएँगे।
कुछ गुल खिले और हवा में बिखर गए।

ना भूल थी बयार की,
ना भूल था नसीब का।
ना डाल दोष हवा पर,
ना डाल दोष बूँदों पर।
अख़्तियार ना था साँसों पर,
आग़ाह ना था मुस्तकबिल का।
नावाक़िफ़ थे आनेवाले कल से।
फूलों की इक डाली हवा से लचकी,
कई ज़िंदगियों को जुंबिशें दें
पंखुडियाँ बिखर गईं।
कुछ गुल खिले और हवा में बिखर गए।

कई पल बिना आवाज़ युगों से गुजर गए,
और हम बिखर गये।
ना पूछ बार बार वो मंजर।
फिर ले जातें हैं उसी ग़म के समंदर।
किसने सोचा था
बहारें आई है, पतझड़ भी आएगा ।
हम सँवरा करते, आईना सवाँरा करता था।
अब खुद हीं हैं ख़्वाबों की दुकाने सजाते,
खुद हीं ख़रीदार बन जातें ।ज़िंदगी हिसाब है वफ़ाओं, जफ़ाओं
और ख़ताओं की।
जो सदायें गूंजती हैं, गूंजने दे ।
फिर बहारें आएगी, गुलशन सजाएगी।
आफ़ताब फिर आएगा ,
गुनगुनी धूप का चादर फैलाएगा।
कुछ गुल खिले और हवा में बिखर गए !
उसकी ख़ुशबुओं को ना पकड़।
जो बिखर गये , वो बिखर गये।
रंजो मलाल में डूब नहीं ।
चलानी है कश्ती ज़िंदगी की।
ना ग़म कर, ना कम कर रौशनी अपनी।
फ़िज़ा में फैलने दे ख़ुशबू अपनी।

कुछ गुल खिले और हवा में बिखर गए !
उनक़ी ख़ुशबुओं को ना पकड़ ,
वे फ़िज़ा में घुल गए।

ज़िंदगी का सफ़र

ज़िंदगी के सफ़र में लोग आते हैं।

कुछ दूर कुछ साथ निभाते हैं।

कुछ क़ाफ़िले में शामिल हो

दूर तलक़ जातें हैं।

कुछ मुस्कान और कुछ

आँसुओं के सबब बन जातें हैं।

कुछ ख़्वाबों में बस कर

रह जातें हैं।

रौशनी

जिस रौशनी को

हम खोज रहें हैं।

वह तो है हमारे अंदर।

हम सब हैं,

चमकते-दमकते सितारें

इस ख़ूबसूरत काया

के अंदर।