ऊपर वाले ने दुनिया बनाते-बनाते, उस में थोड़ा राग-रंग डालना चाहा .
बड़े जतन से रंग-बिरंगी, ढेरों रचनाएँ बनाईं.
फिर कला, नृत्य भरे एक ख़ूबसूरत, सौंदर्य बोध वाले मोर को भी रच डाला.
धरा की हरियाली, रिमझिम फुहारें देख मगन मोर नृत्य में डूब गया.
काले कागों….कौओं को बड़ा नागवार गुज़रा यह नया खग .
उन जैसा था, पर बड़ा अलग था.
कागों ने ऊपर वाले को आवाज़ें दी?
यह क्या भेज दिया हमारे बीच? इसकी क्या ज़रूरत थी?
बारिश ना हो तो यह बीमार हो जाता है, नाच बंद कर देता है।
बस इधर उधर घुमाता अौ चारा चुंगता है.
वह तो तुम सब भी करते हो – उत्तर मिला.
कागों ने कोलाहकल मचाया – नहीं-नहीं, चाहिये।
जहाँ से यह आया है वहीं भेज दो. यहाँ इसकी जगह नहीं है.
तभी काक शिशुअों ने गिरे मयूर पंखों को लगा नृत्य करने का प्रयास किया.
कागों ने काकदृष्टि से एक-दूसरे को देखा अौर बोले –
देखो हमारे बच्चे कुछ कम हैं क्या?
दुनिया के रचयिता मुस्कुराए और बोले –
तुम सब तो स्वयं भगवान बन बैठे हो.
तुम्हें शायद मेरी भी ज़रूरत नहीं.
#SushantSinghRajput,
#BollywoodNepotism
रेखा जी आज की परिस्थितियों पर बड़ी सटीक रचना…
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बहुत आभार पूर्णिमा जी.
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Kitni khubsurati se apni rachna ko sajaayaa hai……sach jahan naa pahuche ravi wahan pahuche kavi………umda rachna.
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बहुत धन्यवाद मधुसूदन .
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बहुत सुंदर रचना।
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आभार तारा, पढ़ने और पसंद करने के लिए.
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🤗
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Rekha ji I am writing an article for Artificial Intelligence and for reference I have selected your blog poems I kindly request you to give details to contact you
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