सुकून

सागर के दिल पर तिरती- तैरती नावें,

याद दिलातीं हैं – बचपन की,

बारिश अौर अपने हीं लिखे पन्नों से काग़ज़ के बने नाव।

 नहीं भूले कागज़ के नाव बनाना,

पर अब ङूबे हैं  जिंदगी-ए-दरिया के तूफान-ए-भँवर में।

तब भय न था कि गल जायेगी काग़ज की कश्ती।

अब समझदार माँझी  

कश्ती को दरिया के तूफ़ाँ,लहरों से बचा

तलाशता है सुकून-ए-साहिल।

 

Stay Happy, Healthy and Safe – 80

कबीरदास का हिंदी दोहा ब्लॉगर स्वामी येसूदास के विशेष अनुरोध पर –

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प्रेम ना बारी उपजै प्रेम ना हाट बिकाय
राजा प्रजा जेहि रुचै,शीश देयी ले जाय।
– कबीर
अर्थ – (प्रेम ना तो खेत में पैदा होता है

और न ही बाजार में विकता है।

राजा या प्रजा जो भी प्रेम का

इच्छुक हो वह अपना सर्वस्व

त्याग कर प्रेम प्राप्त कर सकता है।)

 

Meaning – Love does not grow on trees

 or brought in the market,

 but if one wants to be “loved”

 one must first know

 how to give unconditional love.

Kabir

 

Posting Kabir’s Hindi couplet/ doha along with its meaning on the request of Blogger Swamiyesudas,  a Christian Sannyasi, passionately interested in creating a Better World.