बॉलीवुड एक मायानगरी है, जो ज़िंदगी के जंग से जूझते सामान्य लोगों के लिए सपने बुनता है, मनोरंजन ले कर आता है. जिसके पात्रों को आम लोग रोल मॉडल मानते हैं, सराहते हैं. हर तबके के लोग अपने गाढ़ी कमाई से टिकट ख़रीदते हैं, सिनेमा के तीन घंटे में अपने दुःख दर्द भूलने के लिए.
इस रुपहले पर्दे के पीछे की सच्चाई इतनी कटु है? यहाँ जीवन-मौत एक खेल बन चुका है ? सिनेमा के सीन की तरह? इनके अपने नियम क़ानून हैं? जिसे चाहें बैन कर दें? यह हक़ इन्हें कैसे मिला? अगर आम लोग या तथाकथित बाहरी लोग इन्हें बैन कर दें? इनके सिनेमा को देखना बैन कर दें? तब क्या करेंगे ये रूपहले पर्दे के जागीरदार ? जिसे ये बाहरी मानते हैं, उनसे हीं इनका व्यवसाय चलता है.
ऐसे अनेकों शोध हैं जो स्पष्ट बताते हैं कि किसी को भी बुली / bully कर, ङरा कर, आईसोलेट कर, अकेलेपन का एहसास दिला कर बड़ी आसानी से डिप्रेशन के गर्त में ठेला जा सकता है. आश्चर्य की बात है, जिन्हें हम तीन घंटे सुनते हैं. उन्हें यहाँ अनसुना कर दिया जाता है? होनहार कलाकारों को बैन करनेवाले ये लोग, शायद बेहद कमज़ोर, छिछले और डरपोक हैं. इन्हें अंधो में काना राजा बन कर रहने की आदत है. इसलिये प्रतिभावान लोगों से इस क़दर डरते हैं.
आप सबों के विचार आमंत्रित हैं।