खबरें

सब कहते हैं –  प्रकृति  निष्ठुर हो गई है।

पर क़ुदरत से बेरुखी किया हम सब नें ।

कभी सोंचा नहीं यह  क्या कहती है?

 क्यों कहती हैं?

कटते पेङ, मरती नदियाँ आवाज़ें देतीं रहीं। 

जहर बना जल, सागर, गगन। 

हवाएँ कहती रहीं

 अनुकूल बनो या नष्ट हो जाअो…….

अब, पता नही खफ़ा है ? 

 दिल्लगी कर रही है?

या अपने  नियम, कानून, सिद्धांतों पर चल रही है यह ?

खबरें पढ़ कर विचार आता है –

आज हम पढ़तें हैं हङप्पा अौर मोहनजोदाङो,

हजारों साल बाद क्या कोई हमें पढ़ेगा?

 

18 thoughts on “खबरें

    1. इसे अंत कहना ठीक न होगा ….अंत निकट है कहना बेहतर है 😃

      मतलब कि सुधार की गुंजाइश है ❤🌸

      Liked by 1 person

  1. क्या कहूं
    मेरे लिए और हर किसी के लिए यह बहुत ही अच्छा वक्त है। अगर अपने इमान को जिंदा कर ले तो। यह वक्त बहुत कुछ सिखा रही है। खुद में बदलाव लाने को। गर बदल लिए तो ठीक वरना प्रकृति माँ तो है ही। एैसा चमाट मारेगी कि सब सही हो जाएगा।
    बहुत कोई प्रभु को याद कर रहा है पर सिर्फ स्वार्थ भाव से। ये आपदा चली जाए बस हम फिर वही रंग में रंग जाएंगे😶

    Liked by 2 people

    1. सच कह रहे हो। यह समय बहुत कुछ सीखाने वाला समय है – प्रकृति से भी अौर अपनी पुरानी परंपरा से भी।

      Liked by 1 person

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