जिंदगी के रंग- 189

जब जिंदगी से कोई आजाद होता है,

किसी और को यादों की कैद दे जाता है.

सीखना चाह रहे हैं कैद में रहकर आजाद होना।

काँच के चश्मे में कैद आँखों के आँसू ..अश्कों की तरह.

6 thoughts on “जिंदगी के रंग- 189

  1. बहुत ही मर्मस्पर्शी बात कही है रेखा जी आपने । आपकी इस बात जैसा तो नहीं पर कुछ मिलते-जुलते संदर्भ वाला एक शेर मुझे याद आ रहा है :

    हमने क़ैद-ए-कफ़स में सोचा था
    हो के आज़ाद, मुस्कुराएंगे
    किसको मालूम था, रिहा हो के
    दिन ग़ुलामी के याद आएंगे

    Liked by 1 person

    1. मैं लिख कर अपने मन को हल्का करने की कोशिश कर रहीं हूँ. पर अक्सर उलटा हो जाता है.
      आपका लिखा शेर दिल को छू गया. बहुत आभार !

      Liked by 1 person

Leave a reply to Jitendra Mathur Cancel reply