दफ्न पन्ने और बंद किताबें

यादें धुंधली पड़ती हैं समय के साथ,
आंखों की रोशनी धुंधली पड़ती है समय के साथ,
पर
यादों से 
तारीखे   क्यों नहीं धुंधली पड़ती?
जिंदगी के किताब से?
ना जाने क्यों हम खोलते हैं ,
दफ्न पन्नों और बंद किताबों को बारंबार ।

 

अक्स-ए-किरदार

चटकी लकीरें देख समझ नहीं आया

आईना टूटा है या

उसमें दिखने वाला अक्स-ए-किरदार?

 

अंश

कई बार मर- मर कर जीते जीते,
मौत का डर नहीं रहता.
पर किसी के जाने के बाद
अपने अंदर कुछ मर जाता है.
….शायद एक अंश अपना.
वह ज़िंदगी का ना भरने वाला
सबसे बड़ा ज़ख़्म, नासूर  बन जाता है.