तुम हो कहीं !!

श्रद्धांजलि Tribute to my husband 12.10.2018
I lost him in an accident. We donated his eyes. I am sure he is still here, watching this beautiful world.

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जब देखा तुम्हें,

शांत, नींद में डूबी बंद आँखें

शीतल चेहरा …..

चले गए ऐसा तो लगा नहीं.

वह पल, वह समय, वह दिन ….

लगा वहीं रुक गया।

वह ज़िंदगी के कैलेंडर का असहनीय दिन बन गया .

उस दिन लगा

ऐसा क्या करूँ कि तुम ना जाओ?

कुछ तो उपाय होगा रोकने का.

रोके रखने का, लौटाने का ……

कुछ समझ नहीं आ रहा था.

कुछ भी नहीं ….

पर इतना पता था

रोकना है, बस रोकना है .

तुम्हें जाने से रोकना है .

और रोक भी लिया ………

अब किसी भी अजनबी से मिलती हूँ

तब उसकी आँखों में देखतीं हूँ ….

कुछ जाना पहचाना खोजने की कोशिश में .

कहीं तुम तो नहीं …….

शायद किसी दिन कहीं तुम्हें देख लूँ.

किसी की आँखों में जीता जागता .

बस दिल को यही तस्सली है ,

तुम हो, कहीं तो हो, मालूम नहीं कहाँ ?

पर कहीं, किसी की आँखों में.

हमारी इसी दुनिया में.

या क्षितिज के उस पार ………?

श्रद्धा सुमन हैं ये अश्रु बिंदु

जो लिखते वक़्त आँखों से टपक

इन पंक्तियों को गीला कर गए .