खुले दरवाजे, शीशे की अजनबी दीवारें, खिड़कियाँ

आसमान छूने की चाहत छोड़,

कैद कर लिया है अपने को,

अपनी जिंदगी को,

खुले दरवाजे और शीशे की कुछ अजनबी दीवारों, खिड़कियों में।

जैसे बंद पड़ी किताबें,

कांच की अलमारी से झांकती हैं अपने को महफ़ुज मान,

पन्नों में अपनी दास्तानों को कैद कर।

अब खाली पन्नों पर,

अपने लफ्ज़ों को उतार

रश्म-ए-रिहाई की नाकाम कोशिश कर रहें हैं।

Painting courtesy- Lily Sahay.

19 thoughts on “खुले दरवाजे, शीशे की अजनबी दीवारें, खिड़कियाँ

  1. अपनी परिस्थिति को स्वीकार करने से ही उसपर काबू पाया जा सकता है , situation से लड़ते  रहने से काम नहीं बनता.  ऐसा ही कुछ  मैंने अपनी इस कविता में लिखा था अपने ब्लॉग पर यहां :
    http://tiny.cc/mk0vez

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