वर्षा सी बरसती,
अर्ध खुली भीगी आँखों के
गीले पलको के चिलमन से
कभी कभी दुनियाइंद्रधनुष सी,
सतरंगी दिखती है.
आँखों के खुलते ही सारे
इंद्रधनुष के रंग बिखर जाते हैं.
ख़्वाबों का पीछा करती
ज़िंदगी कुछ ऐसी हीं होतीं.
वर्षा सी बरसती,
अर्ध खुली भीगी आँखों के
गीले पलको के चिलमन से
कभी कभी दुनियाइंद्रधनुष सी,
सतरंगी दिखती है.
आँखों के खुलते ही सारे
इंद्रधनुष के रंग बिखर जाते हैं.
ख़्वाबों का पीछा करती
ज़िंदगी कुछ ऐसी हीं होतीं.
ये व्यवस्थित है।
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अब ठीक है क्या परम ?
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क्या खूब कहा। बेहतरीन रचना।👌👌
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धन्यवाद मधुसूदन!
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