एक आदत थी….

जश्न तो हम आज भी मनाते हैं.

कुछ भूले बिसरे नज़्म गुनगुनाते हैं.

एक आदत थी तुम्हे देखने की बजम में.

पर जश्न-ए-ज़िंदगी हार गई मौत से .

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