काल चक्र

जिंदगी के हसीन  पलों को

कितनी  भी बार कहो – थम जा !!

पर यह कब रुकता है?

पर दर्द भरे पलों का

बुलाअो या ना बुलाअो,

लगता है यह खिंचता हीं चला जा रहा है………

पता नहीं समय का खेल है या मन का?

पर इतना तो तय है –

वक्त बदलता रहता है………….

यह काल चक्र चलता रहता है।

जैसा भी समय हो,    बीत हीं जाता है ……….

 

 

 

20 thoughts on “काल चक्र

    1. हाँ, समय कब रुका है? दुःख में हम घबरा जाते हैं अौर सुख में ङूब जाते हैं। पर कुछ भी रुकता नहीं सविता।

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  1. सुख में हम इतना लिप्त हो जाते हैं की पता ही नही चलता कब खत्म हो गया और दुख का एक एक पल पहाड़ की तरह लगता है जबकि कालचक्र अपने एक समान गति से चल रहा है।

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  2. बिलकुल ठीक कहा है रेखा जी आपने । पनघटों की रूत कहाँ, अब वो हसीं चेहरे कहाँ; मंज़रों को वक़्त यादों में बदलकर चल दिया ।

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    1. आपकी इस बात की मैं कायल हूँ। आपके पास हमेशा सुंदर काव्यमय उत्तर होते हैं। बहुत आभार !!!

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