
पसंद
हम चाहें ना चाहें,
सब हमें चाहें।
हम कबूलें या ना क़बूलें लोगों को,
पर हमें सब क़बूल करें।
यह ज़िद्द क्यों, सब पसंद करें तुम्हें?
क्या कायनात मे सभी पसंद हैं तुम्हें?

पसंद
हम चाहें ना चाहें,
सब हमें चाहें।
हम कबूलें या ना क़बूलें लोगों को,
पर हमें सब क़बूल करें।
यह ज़िद्द क्यों, सब पसंद करें तुम्हें?
क्या कायनात मे सभी पसंद हैं तुम्हें?
अक्सर लड़कियाँ को सबक़ – ढके रहना सीखो।
सहना-चुप रहना सीखो, कहना नहीं।
लड़कों के सबक़ होतें हैं – लड़के हो, रोना नहीं,
आँसू नहीं बहाना, ज़िम्मेदार और मज़बूत रहना।
अंदर हीं अंदर घुटती भावनाओं
और दर्द के नासूर का क्या करना?
अपनी तकलीफ़-पीड़ा किसे है बतानी?
अपने लिए खड़े होना कौन सिखायेगा?
सच तो यह है –
भावनाओं और दर्द से भरा बारूद ना बन,
पहले ख़ुद से, अपने दिल-दिमाग़-रूह से प्यार कर।
खुशहाल ज़िंदगी के हक़दार है हम सब।

आज सुबह बॉलकोनी में बैठ कर चिड़ियों की मीठा कलरव सुनाई दिया
आस-पास शोर कोलाहल नहीं.
यह खो जाता था हर दिन हम सब के बनाए शोर में.
आसमान कुछ ज़्यादा नील लगा .
धुआँ-धूल के मटमैलापन से मुक्त .
हवा- फ़िज़ा हल्की और सुहावनी लगी. पेट्रोल-डीज़ल के गंध से आजाद.
दुनिया बड़ी बदली-बदली सहज-सुहावनी, स्वाभाविक लगी.
बड़ी तेज़ी से तरक़्क़ी करने और आगे बढ़ने का बड़ा मोल चुका रहें हैं हम सब,
यह समझ आया.

आँखें ख़्वाब, औ सपने बुनतीं हैं,
हम सब बुनते रहते हैं,
ख़ुशियों भरी ज़िंदगी के अरमान।
हमारी तरह हीं बुनकर पंछी तिनके बुन आशियाना बना,
अपना शहर बसा लेता है.
बहती बयार और समय इन्हें बिखेर देते हैं,
यह बताने के लिये कि…
नश्वर है जीवन यह।
मुसाफिर की तरह चलो।
यहाँ सिर्फ रह जाते हैं शब्द अौर विचार।
वे कभी मृत नहीं होते।
जैसे एक बुनकर – कबीर के बुने जीवन के अनश्वर गूढ़ संदेश।

बुनकर पंछी- Weaver Bird.
गैर मुकम्मल सी इस जिंदगी में समय अौर हालात तय करते हैं
सब अपने हैं !!
या
कोई अपना नहीं है !!
word meaning –
गैर मुकम्मल – Non-perfect
समय के साथ भागते हुए लगा – घङी की टिक- टिक हूँ…
तभी
किसी ने कहा – जरुरी बातों पर फोकस करो,
तब लगा कैमरा हूँ क्या?
मोबाइल…लैपटॉप…टीवी……..क्या हूँ?
सबने कहा – इन छोटी चीजों से अपनी तुलना ना करो।
हम बहुत आगे बढ़ गये हैं
देखो विज्ञान कहा पहुँच गया है………
सब की बातों को सुन, समझ नहीं आया
आगे बढ़ गये हैं , या उलझ गये हैं ?
अहले सुबह, उगते सूरज के साथ देखा
लोग योग-ध्यान में लगे
पीछे छूटे शांती-चैन की खोज में।
शीतल हवा का झोंका बहता चला गया।
पेङो फूलों को सहलाता सभी को गले लगाता ……
हँस कर जंगल के फूलों ने कहा –
वाह !! क्या आजाद….खुशमिजाज….. जिंदगी है तुम्हारी।
पवन ने मुस्कुरा कर कहा –
क्या कभी हमें दरख्तों-ङालों, खिङकियों-दरवाज़ों पर सर पटकते….
गुस्से मे तुफान बनते नहीं देता है?
हम सब एक सा जीवन जीते हैं।
गुस्सा- गुबार, हँसना-रोना , सुख-दुख,आशा-निराशा
यह सब तो हम सब के
रोज़ के जीवन का हिस्सा है!!!
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