आँखें ख़्वाब, औ सपने बुनतीं हैं….

आँखें ख़्वाब, औ सपने बुनतीं हैं,

हम सब बुनते रहते हैं,

ख़ुशियों भरी ज़िंदगी के अरमान।

हमारी तरह हीं बुनकर पंछी तिनके बुन आशियाना बना,

अपना शहर बसा लेता है.

बहती बयार और समय इन्हें बिखेर देते हैं,

यह  बताने के लिये कि… 

 नश्वर है जीवन यह।

मुसाफिर की तरह चलो। 

यहाँ सिर्फ रह जाते हैं शब्द अौर विचार। 

वे कभी मृत नहीं होते।

जैसे एक बुनकर – कबीर के बुने जीवन के अनश्वर गूढ़ संदेश। 

 

 

बुनकर पंछी- Weaver Bird.

10 thoughts on “आँखें ख़्वाब, औ सपने बुनतीं हैं….

  1. क्या खूबसूरत पंक्तियाँ है…..दिल को छुती और वास्तविकता को बतलाती है।

    “नश्वर है जीवन यह।
    मुसाफिर की तरह चलो।”

    Liked by 3 people

  2. जी। सबकुछ नश्वर है।
    फिर भी आशियाना बनाना है,
    मुसाफिर हैं चलते चलते एक दिन
    बहुत दूर चले जाना है।

    Liked by 1 person

    1. कविता का भाव समझने और बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियों में जवाब देने के लिए धन्यवाद मधुसूदन .

      Like

Leave a comment