आँखें ख़्वाब, औ सपने बुनतीं हैं,
हम सब बुनते रहते हैं,
ख़ुशियों भरी ज़िंदगी के अरमान।
हमारी तरह हीं बुनकर पंछी तिनके बुन आशियाना बना,
अपना शहर बसा लेता है.
बहती बयार और समय इन्हें बिखेर देते हैं,
यह बताने के लिये कि…
नश्वर है जीवन यह।
मुसाफिर की तरह चलो।
यहाँ सिर्फ रह जाते हैं शब्द अौर विचार।
वे कभी मृत नहीं होते।
जैसे एक बुनकर – कबीर के बुने जीवन के अनश्वर गूढ़ संदेश।
बुनकर पंछी- Weaver Bird.
क्या खूबसूरत पंक्तियाँ है…..दिल को छुती और वास्तविकता को बतलाती है।
“नश्वर है जीवन यह।
मुसाफिर की तरह चलो।”
LikeLiked by 3 people
बहुत आभार शैंकी .
LikeLiked by 1 person
Behd shandaar…
LikeLiked by 2 people
शुक्रिया मुकेश.
LikeLiked by 1 person
कबीर की पंक्तियों की तरह ‘जो चलना राह मुश्किल है हमन सर बोझ भारी क्या’ पर ये फक्कड़पन बहोत मुश्क़िल है जीवन में ढालना
LikeLiked by 1 person
हाँ, कठिन है पर कोशिश तो किया हीं जा सकता है.
LikeLiked by 1 person
Hmm sach kha !
LikeLiked by 1 person
Thanks dear
LikeLiked by 1 person
जी। सबकुछ नश्वर है।
फिर भी आशियाना बनाना है,
मुसाफिर हैं चलते चलते एक दिन
बहुत दूर चले जाना है।
LikeLiked by 1 person
कविता का भाव समझने और बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियों में जवाब देने के लिए धन्यवाद मधुसूदन .
LikeLike