कायनात और कोरोना

हम सब न जाने कब से धरा, प्रकृति और उसकी व्यवस्था को अस्वीकार कर रहें हैं. उससे खिलवाड़ कर रहें हैं. हम कायनात या इस दुनिया के नियम व तालमेल को रोज़ तोड़ते और भंग करते हैं। धरा, जल, सागर, आकाश, अंतरिक्ष को कचरा से भरते जा रहें हैं.

कभी हम सब ने सोंच नहीं कि प्रकृती हमें रिजेक्ट या अस्वीकार कर दें. तब क्या होगा? आज वही हो रहा है. शायद इस धरा को मानव के अति ने बाध्य कर दिया है. वह अपना राग, नाराज़गी दिखा रही है. कहीं मानव भी विलुप्त ना हो जाए मैमथ, डोडो, डायनासोर की तरह या विलुप्त निएंडरथल – विलुप्त मानव प्रजातियों की तरह. प्रकृति के इस इशारे को संकेत या चेतावनी मान लेने का समय आ गया है. प्रकृति और मानव का सही सामंजस्य अनमोल है. यह समझना ज़रूरी है.

 

ज़िंदगी के रंग – 198

दुनिया में सुख हीं सुख हो,

सिर्फ़ शांति हीं शांति और ख़ुशियाँ हो.

ऐसा ख़ुशियों का जहाँ ना खोजो.

वरना भटकते रह जाओगे.

जीवन और संसार ऐसा नहीं.

कष्ट, कोलाहल, कठिनाइयों से सीख,

शांत रह कर जीना हीं ख़ुशियों भरा जीवन है……