कहते हैं,
बुरा हो या भला हो,
हर वक्त गुजर जाता है।
पर कुछ वक्त कभी मरते नहीं,
कभी गुजरते नहीं।
जागते-सोते ख़्वाबों ख़्यालों में
कहीं ना कहीं,
शामिल रहते हैं।
ज़िंदगी का हिस्सा बन कर।
कहते हैं,
बुरा हो या भला हो,
हर वक्त गुजर जाता है।
पर कुछ वक्त कभी मरते नहीं,
कभी गुजरते नहीं।
जागते-सोते ख़्वाबों ख़्यालों में
कहीं ना कहीं,
शामिल रहते हैं।
ज़िंदगी का हिस्सा बन कर।
दुनिया के समंदर में
ग़म औ अश्क़ का हिसाब रख कर
परेशान होने से अच्छा है,
दर्द-ए-ग़म पर लेप चढ़ा दें अपने मुस्कराहटे-ए- मरहम का।
ग़म ख़ुशी में तो नहीं बदलेगी।
पर शायद हम भी ख़ूबसूरत, आबदार मोती बना दें
अपनी चुभन अौर दर्द को,
सीप की तरह…….
जब सीप / मॉलस्क वायु, जल व भोजन की आवश्यकता के लिए कभी-कभी अपने शेल के द्वार खोलते हैं। तब कुछ विजातीय पदार्थ जैसे रेत कण, कीड़े-मकोड़े आदि उस खुले मुंह में प्रवेश कर जाते हैं। उसके अंदर रहने वाला जीव या मॉलस्क उसके चुभन से बचने के लिये उस पर कठोर पदार्थ /क्रिटलीय रूप में कैल्सियम कार्बोनेट डिपॉजिट करने लगता हैं. सीप अपनी त्वचा से निकलने वाले चिकने तरल पदार्थ द्वारा उस विजातीय पदार्थ पर परतें चढ़ाने लगता है। जो मोती या ‘मुक्ता’ बन जाती है।
A pearl is a hard, glistening object produced within the soft tissue (specifically the mantle) of a living shelled mollusk or another animal, such as fossil conulariids. Just like the shell of a mollusk, a pearl is composed of calcium carbonate (mainly aragonite or a mixture of aragonite and calcite)[3] in minute crystalline form, which has been deposited in concentric layers. The ideal pearl is perfectly round and smooth, but many other shapes, known as baroque pearls, can occur.
लोग हो ना हों, हौसले इनके ज़िन्दा हैं.
इतनी जल्दी भूल गए,
वेट बाज़ार- कोरोना कितना बड़ा फंदा है?
अपनी नहीं चिंता अगर,
दुनिया की तो सोचों.
इन चमगादड़, पैंगोलीन, कुत्तों की सोचों…….
गुलाबी डूबती शाम.
थोड़ी गरमाहट लिए हवा में
सागर के खारेपन की ख़ुशबू.
सुनहरे पलों की ….
यादों की आती-जाती लहरें.
नीले, उफनते सागर का किनारा.
ललाट पर उभर आए नमकीन पसीने की बूँदें.
आँखों से रिस आए खारे आँसू और
चेहरे पर सर पटकती लहरों के नमकीन छींटे.
सब नमकीन क्यों?
पहले जब हम यहाँ साथ आए थे.
तब हो ऐसा नहीं लगा था .
क्या दिल ग़मगिन होने पर सब
नमकीन…..खारा सा लगता है?
दुनिया में सुख हीं सुख हो,
सिर्फ़ शांति हीं शांति और ख़ुशियाँ हो.
ऐसा ख़ुशियों का जहाँ ना खोजो.
वरना भटकते रह जाओगे.
जीवन और संसार ऐसा नहीं.
कष्ट, कोलाहल, कठिनाइयों से सीख,
शांत रह कर जीना हीं ख़ुशियों भरा जीवन है……
जीवन के संघर्ष हमें रुलातें हैं ज़रूर,
लेकिन दृढ़ और मज़बूत बनातें हैं.
तट के पत्थरों और रेत पर
सर पटकती लहरें बिखर जातीं हैं ज़रूर.
पर फिर दुगने उत्साह….साहस के साथ
नई ताक़त से फिर वापस आतीं हैं,
नई लहरें बन कर, किनारे पर अपनी छाप छोड़ने.
नासमझी…नादानी क्या बया करे समझदारों की?
जंगल…धरा तो जल हीं रहें हैं.
दुनिया ने तरक़्क़ी इतनी कर ली नदी …पानी पर भी आग लगा दी.
अपने घर में आग लगे, दो पल भी बर्दाश्त नहीं.
बेज़ुबान जलचरों का घर- नदियाँ जलती रहें, चिंता नहीं.
यह समझदारी समझ नहीं आती.
एक ख़्याल अक्सर आता है.
एक रहस्य जानने की हसरत होती है.
क्या सोंच कर ईश्वर ने मुझे इस आकार में ढाला होगा?
कुछ तो उसकी कामना होगी जो यह रूह दे डाला होगा.
क्यों इतने जतन से साँचे में मूर्ति सा गढ़ा होगा?
क्या व्यर्थ कर दिया जाए इसे दुनियावी उलझनों …खेलों में?
या ढूँढे इन गूढ़ प्रश्नों के उत्तरों को,
अस्तित्व के गलने पिघलने से पहले?
सतह तनाव- surface tension
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