जिंदगी के रंग – 209

गर गुल ना खिले गुलशन में,

मौसम, मृत्तिका….माटी, बीज  में कमी खोजते हैं सब,

ना कि फूलों में ।

पर अजब बात और ख़यालात है हमारे,

कोई  जिंदगी ठोकर से  खिलने ना पाये,

टूट जाए,

मुरझा जाये।

तब लोग उस में हीं  कमी खोजते हैं.

 

6 thoughts on “जिंदगी के रंग – 209

  1. फूल तो दो दिन बहार-ए-जाँ-फ़िज़ा दिखला गए
    हसरत उन ग़ुंचों पे है जो बिन खिले मुरझा गए

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    1. वाह!! बेहद ख़ूबसूरत शेर , मेरी कविता के मर्म के साथ सही बैठता हुआ.
      आपका आभार !!

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