मुस्कुराते है….

मुस्कुराते है….

अपने दर्द को छुपाने के लिए,

अपनों का हौसला बढ़ाने के लिए,

ग़मों से दिल को बहलाने के लिए.

पर  क्यों इससे भी शिकायत है?

 

6 thoughts on “मुस्कुराते है….

  1. कुछ ग़ज़लें याद आईं रेखा जी आपकी इस बात से :

    तुम इतना जो मुसकुरा रहे हो
    क्या ग़म है जिसको छुपा रहे हो

    और

    उनको यह शिकायत है कि हम कुछ नहीं कहते
    अपनी तो यह आदत है कि हम कुछ नहीं कहते

    और

    आँख है भरी-भरी और तुम मुसकुराने की बात करते हो
    ज़िन्दगी ख़फ़ा-ख़फ़ा और तुम दिल लगाने की बात करते हो

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    1. तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो या ग़ज़ल सचमुच मेरे ऊपर लागू होता है। यह मेरी आदत बन गई है।
      और कुछ कहना ना कहना तो अब बेकार ही लगता है ।
      आपकी गजलों को पढ़कर हमेशा मेरे मन में एक ख्वाहिश होती है, कि काश मेरे पास भी ऐसा संग्रह होता। बहुत शुक्रिया।

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