धर्म…मजहब …वह महासागर है.
जो मानव मन में विकसित होता है।
अनंत रूपों में, विविधताएँ लिये।
पशु से प्रकृतिक पूजा……
व्यक्ति से अव्यक्ति, आकार से निराकार रूप,
सूर्य, चांद, संगीत, नृत्य सभी को पूजते हैं।
मूर्त से अमूर्त, देवी देवताओं से सर्वोच्च प्रभु तक,
यह एक विस्तृत परंपरा है,
जो चिंतन है, जिज्ञासा है
इसकी पहुँच स्थुल से सुक्ष्म आत्मिक मंडल तक है,
अंतर्मन तक है।
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