ज़िंदगी के रंग -189

ना जाने कैसी राहों से

गुज़र रही है ज़िंदगी

अनमने चलते रहे ….

कई बार बताए गए रास्ते

पर चलते चलते ग़लत जगह

पहुँच जाती हैं ज़िंदगी .

तब लगता है –

काश दिल की आवाज़ सुनी होती ,

शायद सही मंज़िल मिल जाती.

अभी तो लापता हैं…खो गए हैं,

भटके हुए राहों पर …….