There is nothing
in this world
that can trouble you
more than your own thoughts.
~~Buddha
There is nothing
in this world
that can trouble you
more than your own thoughts.
~~Buddha
गगन से झुक कर पूछा चाँद ने
क्यों आँसू बहा रहे हो?
सामना करो कठिनाईयों का
किसी को फिक्र नहीं तुम्हारे अश्रुयों की ।
लोग इन पर कदम रखते गुजर जायेंगें।
क्योकिं
जिन पर तुम्हारे कदम पङे हैं
वे अोस नहीं मेरे अश्क हैं।
The beauty about the Mahabharata, is that there are many profound anecdotes embedded in the fabric of the story, some in mainstream versions, some in folklore. The purpose of these tales is really to give a deeper understanding of the characters, and more importantly, a deeper understanding of ourselves. They act as windows through which one can peep into one’s own personality. To argue about their historic genuineness would be to completely miss the whole point of these parables.
Once, Krishna asked Duryodhan to bring before him one completely good person, without a spot of evil. Duryodhan, who usually did not take Krishna seriously, oddly took interest in this project. He set off on his chariot to search for the perfect human being. After combing his entire kingdom, he came back and confidently announced to Krishna that there was absolutely no one.
“Not even your cousin the gentle Yudhishtir?” asked…
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जबान चुप थी पर आँखोँ हीं आँखों में बातें हुईं –
तङपते पतंगे ने कहा – मैंने जला दिया अपने-आप को,
जान दे दी
तेरी खातिर।
अश्क बहाती मोमबत्ती ने
कहा मैं ने भी तो तुम्हें
अपने दिल
अपनी लौ को चुमने की इजाजत दी।
Sorrow prepares you for joy.
It violently sweeps everything out of your house,
so that new joy can find space to enter.
It shakes the yellow leaves from the bough of your heart,
so that fresh, green leaves can grow in their place.
It pulls up the rotten roots,
so that new roots hidden beneath have room to grow.
Whatever sorrow shakes from your heart,
far better things will take their place.
❤ Rumi
(यह कहानी बच्चों को बॉडी क्लॉक और इच्छा शक्ति के बारे में जानकारी देती है ।बाल मनोविज्ञान को समझते हुए मनोवैज्ञानिक तरीके से बच्चों को अच्छी बातें सरलता से सिखलायी जा सकती हैं। सही तरीके और छोटी-छोटी प्रेरणाओं की सहायता से बच्चों को समझाना बहुत आसान होता है। यह कहानी इन्ही बातों पर आधारित है। इस साल बॉडी क्लॉक पर आधारित खोज को नोबल पुरस्कार मिला है, इसलिये अपनी इस कहानी को फिर से शेयर कर रही हूँ।)
दादी ने मुस्कुराते हुए कहा- अरे, तू जाग गया है? आशु ने पूछा- दादी तुम सुबह-सुबह कहाँ गई थी? मंदिर बेटा, दादी ने बताशे मिश्री देते हुए कहा। आशु को बताशे स्वादिष्ट टाफी सा लगा। उसके सोंचा, अगर वह भी मंदिर जाए, तब उसे और बताशे-मिश्री खाने के लिए मिलेंगे। उसने दादी से पूछा – दादी, मुझे भी मंदिर ले चलोगी क्या?दादी ने पूछा – तुम सुबह तैयार हो जाओगे? हाँ, पर दादी मेरी नींद सुबह कैसे खुलेगी? आशु ने दादी की साड़ी का पल्ला खींचते हुए पूछा। तुम सुबह कैसे जाग जाती हो?
दादी ने कहा – मेरे तकियों में जादुई घड़ी है। वही मुझे सुबह जगा देतें है। लो, आज इस तकिये को सच्चे मन से अपने जागने का समय बता कर सोना। वह तुम्हें जरूर जगा देगा। पर आशु, सही समय पर सोना तकि तुम्हारी नींद पूरी हो सके। उस रात वह तकिये को बड़े प्यार से सवेरे जल्दी जगाने कह कर सो गया।
आशु स्कूल की छुट्टियों मेँ दादी के पास आया था। दादी से जादुई तकिये की बात सुनकर बड़ा खुश था क्योंकि उसे सुबह स्कूल के लिए जागने में देर हो जाती थी। मम्मी से डांट पड़ती। कभी स्कूल बस भी छूट जाती थी।
अगले दिन सचमुच वह सवेरे जाग कर दादी के साथ मंदिर गया। पेड़ पर ढेरो चिड़ियाँ चहचहा रहीं थी। बगल में गंगा नदी बहती थी। आशु बरगद की जटाओं को पकड़ कर झूला झूलने लगा। पूजा के बाद दादी ने उसे ढेर सारे बताशे और मिश्री दिये।
आशु को दादी के साथ रोज़ मंदिर अच्छा लगने लगा। जादुई तकिया रोज़ उसे समय पर जगा देता था। आज मंदिर जाते समय आशु को अनमना देख,दादी ने पूछा – आज किस सोंच मे डूबे हो बेटा? आशु दादी की ओर देखते हुए बोल पड़ा – दादी, छुट्टियों के बाद, घर जा कर मैं कैसे सुबह जल्दी जागूँगा? मेरे पास तो जादुई तकिया नहीं है।
दादी प्यार से कहने लगी – आशु, मेरा तकिया जादुई नहीं है बेटा। यह काम रोज़ तकिया नहीं बल्कि तुम्हारा मन या दिमाग करता है। जब तुम सच्चे मन से कोशिश करते हो , तब तुम्हारा प्रयास सफल होता है।यह तुम्हारे इच्छा शक्ति या आत्म-बल के कारण होता है। दरअसल हमारा शरीर अपनी एक घड़ी के सहारे चलता है। जिससे हमेँ नियत समय पर नींद या भूख महसूस होती है। इसे मन की घड़ी या बॉडी क्लॉक कह सकतें हैं। यह घड़ी प्रकृति रूप से मनुष्यों, पशुओं, पक्षियों सभी में मौजूद रहता है। इसे अभ्यास या इच्छा शक्ति द्वारा हम मजबूत बना सकतें हैं।
आशु हैरान था। इसका मतलब है दादी, मुझे तुम्हारा तकिया नहीं बल्कि मेरा मन सवेर जागने में मदद कर रहा था?दादी ने हाँ मे माथा हिलाया और कहा – आज रात तुम बिना तकिये की मदद लिए, अपने मन में सवेरे जागने का निश्चय करके सोना।आशु नें वैसा ही किया। सचमुच सवेरे वह सही समय पर जाग गया। आज आशु बहुत खुश था। उसे अपने मन के जादुई घड़ी को पहचान लिया।
किसी ने पूछा –
दिवाली में दीये तो जला सकतें हैं ना?
ग्लोबल वार्मिंग की गरमाहट
तो नहीं बढ़ जायेगी……
नन्हा दीया हँस पङा।
अपने दोस्तों को देख बोला –
देखो इन्हें जरा…..
सारी कायनात अपनी गलतियों से जलाने वाले
हमारी बातें कर रहें हैं।
जैसे सारी गलती हमारी है।
“Early to bed
and early to rise
makes a man
healthy, wealthy, and wise.”
~~~ Benjamin Franklin
I have believed in this quote since childhood, thrilled to see that scientists have proved it today.
गरिमा के साथ मौत स्वैच्छिक सक्रिय इच्छामृत्यु या चिकित्सक की सहायता से हो, इस बात के बहस में अक्सर यह कहा जाता है, — जब लोगों को गरिमा के साथ जीने का अधिकार है, तब उनके पास भी गरिमा के साथ मरने का अधिकार भी होना चाहिये।
अरुणा शानबाग की मौत के बाद यह अधिकार कानूनी हो गया है और सरकार बिल को सही तरीके से लागू करने की तैयारी कर रही है (The Article 21 )।
Death with dignity – In support of physician assisted suicide or voluntary active euthanasia, the argument is often made that, as people have the right to live with dignity, they also have the right to die with dignity.
Now , after the death of Aruna Ramchandra Shanbaug it has become legal and government is now preparing to institutionalise the practice by moving the bill(The Article 21 ).
If you truly
loved yourself,
you could never hurt another.
~~Buddha
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