तितलियों के देश में – बालकथा (Land of butterfly-story for children)


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नन्ही चाँदनी अपने खुबसूरत बगीचे में , बङे-बङे गेंदे अौर ङालिया के फूलों को निहार रही थी। गुलाबी जाङे में बगीचा खुशबूदार, रंगीन अौर ताजे फूलों से भरा था। हर क्यारी में अलग-अलग तरह के सुंदर फूल हवा के झोंकों के साथ झूम रहे थे। साथ हीं उन पर मंङरा रहीं थी रंगबिरंगी तितलियाँ।
चाँदनी, रेङ्ङी माली भईया से रोज कहती- “ ङालिया के फूलों को अौर बङा करो ना भईया”, अौर वह हँस कर कहता- “ हौब्बे नहीं करेगा – होगा हीं नहीं”। उसकी बातें सुन चाँदनी खिलखिला कर हँस पङती थी। उसे माली भईया की अटपटी हिंदी सुन कर बङा मज़ा आता था। उसके साथ खङी उसकी चिक्की दीदी दोनों की बातें सुन कर मुस्कुरा देती थी।

चिक्की दीदी को बगीचे में काम करना बङा पसंद था। इसलिये माली भईया के कुछ दिनों के लिये घर जाने पर, मम्मी ने यह काम उसे सौंप दिया था। आजकल हर शाम चिक्की दीदी बगीचे में पाईप से पानी ङालती। चाँदनी भी दीदी की मदद करती। फिर दीदी फूलों पर दवा अौर खाद स्प्रे करती। माली भईया घर से वापस लौटे तो हैरानी से बोल पङे – “ अरे, ङालिया के फूल तुम्हारे चेहरे से भी बङे कैसे हो गये ? तुमने जादू कर दिया क्या”? चाँदनी हँस पङी।
चाँदनी को तितलियों के पीछे दौङने में बङा अच्छा लगता था। अभी भी, चाँदनी की बङी-बङी आँखे, खुबसूरत रंगबिरंगी तितलियों का पीछा कर रही थीं। वह उनसे दोस्ती करना चाहती थी। इसलिये वह उन्हें पकङने के लिये उनके पीछे भागती रहती थी।

आज भी वह बङी देर तक उनके पीछे दौङती- भागती रही। पर वे तितलियाँ पकङ में हीं नहीं आ रहीं थीं। तभी उसकी नजर गुलाबों की क्यारी पर पङी। एक बङे-बङे पंखों वाली प्यारी, सुंदर सी तितली बङे आराम से गुलाबी गुलाब का रस पी रही थी। चाँदनी दबे पैर तितली के पास, पीछे से पहुँची। उसने धीरे-धीरे , चुपके से अपनी नन्हीं अंगुलियों से तितली के रंगीन परों को पकङ लिया। तितली बङे जोरों से पंख फङफङाने लगी। चाँदनी ङर गई। घबङा कर उसने तितली को छोङ दिया। तितली बङी तेज़ी से दूर आकाश में उङ गई।

अब तक चाँदनी तितलियों के पीछे भागती – भागती थक गई थी। पकङ में आई तितली के उङ जाने से वह उदास भी हो गई थी। उसके बाग में एक कटे पेङ का तना दो पत्थरों पर रख कर बेंच जैसा बना था। वह उस पर जा बैठी। फिर बगीचे में लगे छोटा से झूले पर जा कर आराम से बैठ गई।

झुले के पास के छोटे से पानी के टैंक में कमल का नीला फूल खिला था। उसमें बहुत सी छोटी -छोटी काली मौली मछलियाँ तैर रहीं थीं। टैंक के चारो अोर गुच्छे- गुच्छे फ्लौक्स के रंग- बिरंगे फूल खिले थे। चाँदनी मछलियों को देखती हुई झूला झूलने लगी।

तभी, उसने देखा, बगीचे वाली खुबसूरत, बङे-बङे पंखों वाली तितली नीले कमल के फूल पर आ कर बैठ गई अौर सुबक-सुबक कर रोने लगी। चाँदनी ने तितली को आवाज़ दे कर पूछा – “ तुम रो क्यों रही हो”। तितली ने जवाव दिया – “ मेरा नाम मोनार्क है। मुझे मेरे देश से निकाल दिया गया है”। “क्यों” – चाँदनी पूछ बैठी। सुबकते हुए तितली ने कहा – “ क्योंकि, तुम्हारे पकङने से मेरे पंखों के रंग निकल गये “। इसलिये तितलियों के देश की रानी ने मुझे निकाल दिया”।

चाँदनी को अपनी गलती पर पछतावा होने लगा।मन हीं मन उसने सोंचा , अब वह कभी तितलियों को पकङ कर परेशान नहीं करेगी। उसकी नजरें अपनी अंगुलियों पर पङी। सचमुच उसकी अंगुलियों पर तितली के पंख के रंग लगे थे। उसने मोनार्क को अपनी अंगुलियों पर लगे रंग का धब्बा दिखाया। मोनार्क खुशी से बोल पङी, “अरे मेरे रंग तो सुरक्षित हैं। मैं इन्हें वापस ले सकती हूँ । तुम अपनी अंगुलियों को फिर से मेरे परों पर धीरे से रखो”।
चाँदनी ने वैसा हीं किया। मोनार्क अपने पंखों को हौले से चाँदनी की अंगुलियों पर रगङने लगी अौर सचमुच रंग पंखों पर वापस आ गये। मोनार्क अौर चाँदनी खुशी से खिलखिला कर हँसने लगी।

मोनार्क ने वापस जाने के लिये पंख फङफङाये अौर कहा – “चाँदनी अपनी आँखे बंद करो”। चाँदनी ने जब आँखें खोली तब हैरान रह गई। वह ढेरों तितलियों के बीच, उनके देश में थी। मोनार्क ने चाँदनी को तितलियों के पूरे जीवन चक्र के बारे में बताया अौर दिखाया, कैसे पत्तों पर वे अपने अंङे सुरक्षित रहने के लिये चिपका देतीं हैं। जिनसे लार्वा निकलता है। वह कुछ दिनों में वह प्युपा बन पेङ के तनों पर लटक जाते हैं अौर समय आने पर इन प्युपा का कायापलट हो जाता है। ये खुबसूरत तितलियों के रुप में अपने झिल्ली से बाहर आ जाते हैं। चाँदनी, आश्चर्य के साथ सारी बातें सुन रही थी।

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फिर मोनार्क उसे अपनी रानी तितली के पास ले गई। रानी तितली ने चाँदनी को मोनार्क के रंगों को लौटाने के लिये धन्यवाद दिया । उसने चाँदनी को तोहफे में एक सुंदर पीला गुलाब दिया। तभी चाँदनी ने मम्मी के पुकारने की आवाज सुनी। उसने चौंक कर देखा। मम्मी उसे जगा रहीं थीं। वह शायद झूला झूलते हुए सो गई थी। तभी उसकी नजर झूले पर पङे पीले गुलाब पर पङी। वह सोंच में पङ गई, यह सपना था या सच्चाई? फिर उसने मन हीं मन सोंचा, जो भी हो अब वह तितलियों को कभी नहीं सतायेगी।

(बच्चों की अपनी एक   काल्पनिक दुनिया  (fantasy land) होती है।  इसलिये बाल मनोविज्ञान को समझते हुए , कहानी के माध्यम से  बच्चे बातें ज्यादा अच्छी तरह समझते हैं। यह कहानी बच्चों  को तितलियों के जीवन चक्र की जानकारी देती  है। साथ हीं यह बच्चों को  सह्रिदयता  का पाठ पढ़ाती है)

Images from internet.

हेजलनट – स्ट्रॉबेरी केक Hezalnut-strawberry cake recipe

 


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Healthy whole wheat cake – Cake Recipe and images  courtesy Chandni Sahay

आटे का केक 

सामान-
आटा– २ कप
चीनी – १ कप
अंङा – ४
मक्खन – ½ कप
वेनिला एसेंस – ४-५ बुंद
बेकिंग पाउङर- १/२ चम्मच

हेजलनट- रोस्टेङ

दूध- आवश्यकतानुसार

बनाने का तरीका-

१. आटा अौर बेकिंग पाउङर २-३ बार चलनी से चालें।

२. अंङे की सफेदी अौर जर्दी अलग-अलग करें। सफेदी कङा झाग होने तक फेटें।
३. जर्दी को अलग से इतना फेटें । जिससे वह क्रीमी अौर हलका हो जाये। इसमें थोङा-थोङा कर चीनी ङालें अौर फेंटते जायें।
४. अब इसमें एक बार थोङा आटा ङालें अौर फेटें फिर थोङा अंङे की सफेदी ङालें फेटें। यह क्रम आटा अौर अंङे की सफेदी खत्म होने दोहराते जायें।

५. ४-५ बुंद वेनिला एसेंस ङाल कर फेटें।

६. अगर जरुरत हो तो थोङा दूध ङालें। हेजलनट ङालें।

७. केक टिन/ माइक्रोप्रूफ बर्तन  में मक्खन लगा कर  केक घोल ङालें। १८०/180 ङिग्री पर १०-१२ मि बेक करें।  केक को ठंडा होने दें।

आइसिंग- सामान

हेजलनट मक्खन/  न्युटेला –

विपिंग क्रीम/ ङब्बल क्रीम–

सजावट के लिये स्प्रिंकल्स्

ताजी स्ट्रॉबेरी – ५-१० आधा-आधा कटा
स्ट्रॉबेरी सिरप – ४-६ चम्मच

तरीका-

विपिंग क्रीम/ ङब्बल क्रीम  थोङा फेटें। अब इसे केक के ऊपर व चारो अोर चम्मच से लगायें।   केक के बीच में आधी कटी   ताजी स्ट्रॉबेरी / फल बिछायें। । ऊपर से  स्ट्रॉबेरी सिरप ङालें।
आइसिंग सीरिंज में क्लोज स्टार नोजल लगा लें। आइसिंग सीरिंज में हेजलनट मक्खन/ न्युटेला भरें । अब केक के ऊपर किनारे से गुलाब बनाने की शुरुआत करें। फूल एक बिंदू से शुरू करें अौर बाहर की अौर गोल-गोल बनाते जायें। इस तरह किनारे-किनारे गुलाब बनाते जायें।

टिप –
१ हैंङ मिक्सर इस्तेमाल करने से केक घोल अच्छा मिक्स होता है।
२ थोङा-थोङा करके ङालने से बीच में हवा रह जाता है। जिससे केक ज्यादा फुलता है।

Cake Recipe and images  courtesy Chandni Sahay

Parenting: The Joy and The Challenge – Psychology


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What type of parent are you?

What type of parents were your parents?

What may be the root cause of your stress & anxiety?

This article is useful for parents, would be parents and people prone to mental illness or those who are suffering mental stress and anxiety. It may help in understanding the root cause and reasons of the issue/s.

Personality theories in Psychology explain that the first 5 years are extremely crucial in building the personality of an individual. These years are usually spent with a parent or another primary caregiver. Parenting or child rearing is the process of promoting and supporting the physical, emotional, social, financial, and intellectual development of a child from infancy to adulthood. It refers to the aspects of raising a child aside from the biological relationship.

Following are the 4 main types of parenting styles.

1.  Authoritarian parenting—(Restrictive, punishment-heavy parenting style)
These parents are demanding but less or not responsive. Authoritarian parents have very high demands and low responsiveness towards their children. Instead of getting feedback for their mistakes children are punished harshly, like being yelled at or corporal punishment. They implement strict rules that are expected to be followed unconditionally. Since the parent believes in authority, children are not given choices or options to achieve a certain goal.

Positive impact on children

Obedient to authority
May become good in following instructions
They may score well in school exams
May be less deviant in their behaviour

 

Negative impact on children

Feels problems in the absence of parental figure
Poor decision taking ability
Low confidence
Low social adjustment
Low self-esteem
Some children may show aggressive behaviour
Some others may show fearful/shy behaviour
Studies show that many may suffer from depression and anxiety.

 

2. Indulgent parenting(Permissive, non-directive or libertarian parenting style)
The parent is responsive but not demanding. Permissive parents are low in demands but high in responsiveness. These parents are more like a friend than a parental figure, so they provide few guidelines and rules. They are very loving and always treat their child like kids. Generally, they do not expect mature behaviour from their children. Sometimes, they may try to control their children with gifts, toys, money, food, chocolates etc.

Positive impact on children

Freedom to make choices
May have adequate self-confidence
May score well in school if interested

 

Negative impact on children

Poor self-regulation and self-control
Poor self-discipline
Believes in violating rules
Takes undue advantage of parents affection
Sometimes children develops blackmailing attitude
Poor social skills
Mostly feel insecure, as they have not learned the value of rules, boundaries and guidance
Generally very demanding self obsessed / involved and selfish
Unruly in school
Poor academics
Childish behaviour, lacks maturity
Unrealistic demands
Stubborn
Studies show they are prone to heavy drinking, drugs and other forms of misconduct

 

3. Neglectful parenting— (Uninvolved, detached, dismissive or hands-off parenting style)
Such parents are neither demanding nor responsive. They remain uninvolved, neglectful, and lack in responsiveness to a child’s needs. They are mostly indifferent, dismissive or even completely neglectful. These parents have little emotional involvement with their kids. Basic needs such as food and shelter are provided, but, emotional involvement is very restricted. A neglectful parent may not participate in the child’s school activities or may hardly interact with the child. At the same time, the degree of involvement may vary considerably from parent to parent. Hardly any rules or demands are made on the child too.

Positive impact on children

Some of them may become self learners.
May develop strong fulfilling relationships outside

 

Negative impact on children

Shy and withdrawn
Extremely low confidence
Prone to substance abuse, crime
Poor thinking ability
Poor emotional and social skills
Prone to stress, anxiety, and fear

 

4. Authoritative parenting— (Child – centred parenting style)
Such parents have reasonable demands and high responsiveness. The authoritative parenting style is usually identified as the most effective. It is flexible. In this style of parenting, the parent has reasonable demands and high responsiveness towards the child. Generally they have high expectations with their children, they also provide their children with resources and support that they need to succeed. These parents also encourage independence and using the child’s own reasoning and understanding. They also encourage their children to express their opinions and feelings.

The discipline method used is reasonable, consistent, and proportionate to the child’s action. Most importantly, the parent explains to the child the reason for disciplining in a logical manner. These parents act as role models and exhibit the same behaviours they expect from their children.

Positive impact on Children

Strong self-regulations skills
Adequate self-confidence
Learn new skills easily
Balanced emotional control
Adequate social skills
Independence in thought, emotion and behavior

 

Negative impact on children – (If parents are more demanding)

Children may be resentful and frustrated
May develop a fear of failure if too much pressure is present
These are thus the 4 main types of parenting that are identified by researchers. A parent can not always fit one category or the other. At the same time, achieving a balance in the interactions with your child is very important. These categories are not watertight compartments, and also differ based on the personality of the parent and child, and the culture in which parenting is taking place. If you feel that your relationship with your child is troubling you significantly, we recommend you seek professional help from a counselor as soon as you can.

 

 

http://www.acciohealth.com/learn/parenting-the-joy-and-the-challenge/

 

 

Image from internet.

आशीर्वाद- कविता

 

किसी के जाने के बाद

यादें और आशीर्वाद
रह जाते है,
ना कोई छीन सकता है,
ना इसका बँटवारा होता है.

                                                          ( मेरे पिता के पुण्यतिथि पर , 21 Dec)

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Source: आशीर्वाद

शिवलिंग और नर्मदा ( कविता ) #SelfDiscovery – poetry

 


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एक पत्थर ने पूछा शिवलिंग से।

तुम चिकने हो, सलोने हो इसलिए

पूजे जाते हो?

हमें तो ना कोई पूछता है।

ना ही पूजता है।

शिवलिंग ने कहा- मैं भी तुम जैसा ही था।

नोकदार रुखड़ा, पत्थर का टुकड़ा।

पर मैंने अपने को छोड़ दिया

नदी के प्रवाह में, नियंता के सहारे।

दूसरों को चोट देने के बदले चोटें खाईं।

नर्मदा ने मुझे घिस – माँज कर ऐसा बनाया।

क्या तुम अपने को ऐसे को छोड़ सकोगे?

तब तुम भी शिव बन जाओगे, शिवलिंग कहलाओगे।

(ऐसी मान्यता है कि नर्मदा नदी का हर पाषाण शिवलिंग होता है या उनसे स्वाभाविक और उत्तम शिवलिंग बनते हैं। नर्मदा या रेवा नदी हमारे देश की 7 पवित्र नदियों में से एक है। नर्मदा नदी छत्तीसगढ़ में अमरकंटक मैं विंध्याचल गाड़ी श्रृंखला से निकलती है और आगे जाकर अरब सागर में विलीन हो जाती है। अमरकंटक में माता नर्मदा का मंदिर है । यह ऐसी एकमात्र नदी है जिस की परिक्रमा की जाती है यह उलटी दिशा में यानी पूरब से पश्चिम की ओर बहती है । इसे गंगा नदी से भी ज्यादा पवित्र माना जाता है । मान्यता है कि गंगा हर साल स्वयं गंगा दशहरा के दिन नर्मदा नदी के पास प्ले के लिए पहुंचती है ।यह एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। इस प्राचीन नदी की चर्चा रामायण, महाभारत , पुराणों और कालिदास के साहित्य में भी मिलता है।

हमारा जीवन भी ऐसा हीं है। जीवन के आघात, परेशनियाँ, दुःख-सुख हमें तराशतें हैं, हमें चमक  प्रदान करते हैं ।

Life is a journey of self discovery. Describe your journey till now or a part of your journey which brought to closer to a truth about life or closer to your soul and self-discovery. #SelfDiscovery

 

शब्दार्थ -word meaning

 

नियंता – ईश्वर, भगवान

प्रवाह – धार, बहाव

नर्मदा – नर्मदा नदी

 

 

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Source: शालिग्राम और नर्मदा ( कविता )

जीवन में रिक्तता का अहसास- एमटी नेस्ट सिंड्रोम, मनोविज्ञन Empty nest syndrome – Psychology

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Empty nest syndrome is a feeling of loneliness, depression, sadness, anxiety and grief in parents, when their children leave home for job, further studies or to live on their own.

एमटी नेस्ट सिंड्रोम – बङे होने पर बच्चे नौकरी, अध्ययन या घर बसाने के लिये माता-पिता से अलग हो जाते हैं। जिससे माता-पिता मानसिक तनाव, चिंता, दु: ख और अकेलापन महसूस करते हैं । जैसे पंक्षियों के बच्चे बङे होते हीं घोंसला छोङ कर उङ जातें हैं, वैसे हीं बच्चे बङे होने पर घर छोङ कर वैसे हीं रिक्तता का अहसास माता-पिता को देते हैं। यह सिंड्रोम माता-पिता में अवसाद, उदासी, और दु: ख की भावनाएँ भर देता है।महिलाओं में एमटी नेस्ट सिंड्रोम पुरुषों से अधिक पाया गया हैं.
प्रभाव
1. जीवन के उतर्राध की समस्याँए
2. कुछ खोने की भावना
3. अवसाद और चिंता
4. आत्म पहचान खोने की भावना
5. वैवाहिक जीवन पर कुप्रभाव
6. महिलाओं में आम

सकारात्मक प्रभाव –
बच्चों के ना रहने से पारिवारिक काम के दायित्व अौर उससे संबंधित समस्याअों मे कमी आती है। जिससे माता-पिता को एक दूसरे के साथ जुड़ने के लिए नये अवसर मिलते है। फलतः आपसी संबंधों पर सकारात्मक प्रभाव पङता है।

1. पारिवारिक काम के बोझ में कमी –
2. परिवार संघर्ष में कमी
3. संबंधों में सुधार –

 

समाधान

1. सच्चाई स्विकार करते हुए अपने आप को परिवर्तन के लिए अनुकूल करने का प्रयास करना चाहिये।
2. बड़े फैसले तब तक स्थगित करना चाहिये, जब तक मनःस्थिति अनुकूल ना हो। यह तनाव के स्तर को कम रखेगा। उदाहरण के लिये बच्चों के साथ रहने का निर्णय या बड़ा घर बेच कर छोटे घर में रहने का निर्णय आदि तभी लेना चाहिये, जब मन शांत हो जाये।
3. मित्रों और सहयोगियों से मिलना जुलना व संबंध बनाना चाहिये।
4. एक ऐसी बातों की सूची बनाएँ जो आप कभी करना चाहते थें। अपने
रुचि, शौक अौर शगल को फिर से जीवन में लायें।
5. अपनी हाबी को पुनः जीवित करें। लेखन, चित्रकला, संगीत जो भी चाहें, शौक को आगे बढ़ायें।
6. प्राणायाम, योग, व्यायाम आदि जरुर करें।
7. सकारात्मक दृष्टिकोण अपनायें।

 

सुझाव –

कुछ लोग अतिसंवेदनशील होते हैं। उनके लिये यह समस्या स्वंय सुलझाना सरल नाहीं होता है। ऐसे अभिभावकों को काउन्सिलर की मदद लेनी चाहिये।

 

 

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2 Year Anniversary with Word Press मेरी खुबसूरत ब्लॉग दुनिया -कविता

 

 

मेरी ब्लॉग की दुनिया

बडी खुबसूरत , सकरात्मक

और रंगो से भरी हैं.

देश – दुनिया , रंग, जात , धर्म

की सीमा से आजाद.

ना बंधन ना विवाद.

सिर्फ मित्रों की टोली

और ज्ञान -विज्ञान

मन की बातें ,

दिल की पीडा.

जो चाहे उडेल दो.

संगी -साथी बाँट लेंगे.

मेरे ब्लॉग की दुनिया बड़ी खूबसूरत हैं.

खेल – खेल कर स्वस्थ रहें -मनोविज्ञन Psychology-Sports and Physical Activity Reduces Stress

पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब।
खेलोगे कूदोगे होगे खराब।

बचपन में यह जुमला अक्सर सुनने के लिये मिलता था। क्या आप विश्वास करेगें, आज यह बात विपरीत होती जा रही है। आज लोग खेल मे भाग लेते हुए तनाव के स्तर को कम करने और अच्छा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त रखने की बातें कर रहें हैं।

मेडिकल शोधकर्ताओं, डॉक्टरों अौर अमेरिकन एसोसिएशन आफ एंजाईटी एंङ ङिप्रेशन के अनुसार, खेल और नियमित व्यायाम से हम अपनी चिंताओं और अवसाद को नियंत्रित कर अपने दिमाग को राहत पहुँचा सकते हैं।साथ हीं फील गुड एहसास प्राप्त कर सकते हैं। वास्तव में यह सच्चाई भी है कि खेल , व्यायाम तथा योग तनाव से राहत प्रदान करते हैं। ये शारीरिक गतिविधियाँ तनाव कम करते हैं।

तनाव

सामान्य तनाव जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है।पर सामान्य से अधिक तनाव या चिंता गंभीर मानसिक समस्या है। सर्वेक्षणों के अनुसार अमेरिका में हर दस वयस्क में सात गंभीर दैनिक तनाव या चिंता के शिकार होते हैं।

अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन ने 2007 – 2008 में एक सर्वेक्षण किया। इसमें पाया गया, लोगों को तनाव के कारण तथा उससे होने वाले शारीरिक और भावनात्मक तनाव में पिछले एक साल में वृद्धि हुई है।

एक ऑनलाइन सर्वेक्षण के अनुसार 14 प्रतिशत, लोग तनाव से निपटने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करते हैं। 18 प्रतिशत दोस्तों या परिवार से बात करते हैं,। सोकर 17 प्रतिशत लोग तनाव कम करने की कोशिश करते हैं।फिल्में या टीवी देख कर14 प्रतिशत, 13 प्रतिशत संगीत सुन कर अौर खाना या मनपसंद भोजन से 14 प्रतिशत लोग तनाव कम करने की कोशिश करते हैं।

तनाव का प्रबंधन कैसे करें – मानसिक स्वास्थ्य

खेल और नियमित व्यायाम शारीरिक और मानसिक तनाव से राहत देता है। साथ हीं नींद को बढ़ती हैं।

* जीवन में बादलाव जरुरी है –
मनोरंजन, खेल, शरीरिक गतिविधियाँ , योग आदि उपलब्धि की भावना और आत्मविश्वास बढ़ाते हैं। साथ हीं जीवन में परिवर्तन लाते रहते हैं। जो मन में जमे तनाव को पिघलाता हैं।

* एंडोर्फिन – फील गुड मस्तिष्क रसायन
खेल, नियमित व्यायाम अौर शारीरिक गतिविधियाँ, हमारे शरीर में न्यूरोट्रांसमीटर या मस्तिष्क रसायन एंडोर्फिन शरीर के उत्पादन को उत्तेजित करते हैं। एंडोर्फिन हमारे मूड में सकारात्मक परिवर्तन के लिए जिम्मेदार है। एंडोर्फिन के स्तर में वृद्धि से “फील गुड” भावना आती है, दर्द कम होता है और तनाव और अवसाद में कमी आती है। खिलाङी इसे परम उत्साह की स्थिती या रनरस हाई (runner’s high) कहतें हैं।

* समाजीकरण, लोगों से मिलना -जुलना
समाजीकरण किसी भी तनाव प्रबंधन दिनचर्या का एक जरूरी हिस्सा है। लोगों से मिलने -जुलने, टीम में खेलने अौर भाग लेने से हमारे शरीर में ऑक्सीटोसिन हार्मोन का स्त्राव बढ़ाता है। ऑक्सीटोसिन हार्मोन हमें तनावरहित कर चिंता स्तर को कम करता है।

* आत्म सम्मान
क्या आप जानते हैं, आत्म सम्मान की भावना और आत्म प्रभावकारिता की भावना हमारे तनाव के स्तर को कम कर सकते हैं ? जिसे आप खेलकूद से प्राप्त कर सकतें हैं। यह आप की सुस्ती, उदासीनता, आत्म घृणा यहां तक कि अवसाद की भावनाओं को कम कर सकती है।यानि तनाव से लङने के लिये नियमित खेलकूद व व्यायाम शक्तिशाली हथियार है।

* स्वस्थ आदतें
खेलकूद व व्यायाम से अच्छी भूख लगती है। जो हमें पौष्टिक भोजन, नाश्ता और पेय पदार्थों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करती है।साथ हीं वजन भी नियंत्रित करती हैं। इससे सोने की दिनचर्या में सुधार तथा फिटनेस आता है।

* शरीर और मन का कसरत
अध्ययनों से पता चलता है कि शारीरिक गतिविधियाँ सतर्कता और एकाग्रता में सुधार लाती हैं। यह तनाव कम कर शारीरिक ऊर्जा अौर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता बढ़ातीं हैं। खेल, ध्यान आदि के समय लिये गये गहरे सांस एंडोर्फिन का उत्पादन कर सक्रिय और स्वस्थ महसूस कराती हैं।

अगर आपको खेल – खेल में शारीरिक और मानसिक पुरस्कार प्राप्त करना हैं, तब खेल अौर शारीरिक गतिविधियाँ उम्र अौर अपनी क्षमता के अनुसार बढ़ाएँ अौर स्वस्थ रहें।

मृत कल अौर अजन्मा कल – कविता ” Dead yesterday n unborn tomorrow” -Poem #celebrateTodayThisMoment


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“Dead yesterday n unborn tomorrow , why fret about them , if today be sweet.”

कहते हैं, बीती ताहि बिसार दे , आगे की सुधि ले..

 जो बीत गई सो बात गई!!

पर बीता इतिहास तो सबक देता है।

गर उसे बोझ ना बना लें हम,

आनेवाला दिन , क्या होगा कैसा होगा?

भविष्य के गर्भ में क्या छुपा है? कौन जाने?

भविष्यनिर्माण योजना ना बनायें?

यह सपना भी तो जरुरी है।

पर यह ख्याल, यह फलसफा भी बुरा नहीं-

“कल हो ना हो……

इस क्षण  को जी लें आज ”

भविष्य के दिवा स्वप्न ,

भूत के बोझ

मृत कल अौर अजन्मे कल की चिंता क्यों?

गर आज  मधुर, खुशनुमा हो…….

शब्दार्थ-

दिवा स्वप्न – day dreaming

बिसार – forget

भविष्यनिर्माण योजना- future planning

भूत- Past

Indispire Topic-

Regretting the past and worrying about the future will further flatten the time in which you are living and celebrate today and try to employ the most of it.Write a post on the celebration of Today ..This moment is the only truth. #CelebrateTodayThisMomen

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