शांती-चैन की खोज

समय के साथ भागते हुए लगा – घङी की टिक- टिक हूँ…

तभी

किसी ने कहा  – जरुरी बातों पर फोकस करो,  

तब लगा कैमरा हूँ क्या?

मोबाइल…लैपटॉप…टीवी……..क्या हूँ?

सबने कहा – इन छोटी चीजों से अपनी तुलना ना करो।

हम बहुत आगे बढ़ गये हैं

देखो विज्ञान कहा पहुँच गया है………

सब की बातों  को सुन, समझ नहीं आया 

आगे बढ़ गये हैं , या उलझ गये हैं ?

अहले सुबह, उगते सूरज के साथ देखा

लोग योग-ध्यान में लगे 

पीछे छूटे शांती-चैन की खोज में।

 

 

 

जीवन में अर्थ

 

जीवन में अर्थ खोजते-खोजते समय निकल गया।

अर्थ समझ आया, तब जीवन निकल चुका था।

काल चक्र

जिंदगी के हसीन  पलों को

कितनी  भी बार कहो – थम जा !!

पर यह कब रुकता है?

पर दर्द भरे पलों का

बुलाअो या ना बुलाअो,

लगता है यह खिंचता हीं चला जा रहा है………

पता नहीं समय का खेल है या मन का?

पर इतना तो तय है –

वक्त बदलता रहता है………….

यह काल चक्र चलता रहता है।

जैसा भी समय हो,    बीत हीं जाता है ……….

 

 

 

मौन अौर समय

सुनाने वालों की बातें

सुन कर

मौन को बोलने दो।

क्योंकि सही जवाब तो

समय देता है।