एक उलझन

एक उलझन नहीं सुलझ रही।

हैं ज़िंदगी ख़्वाबों में मसरूफ़,

ख़्वाबों की इबादत में मसरूफ़।

है ख़ूबसूरत नशीला वसंत,

कहकशाँ,, चाँद-तारो भरी रातें।

नींद भरी आँखें अपनी

दर्द भरी कहानी किसे सुनायें?

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आँखें ख़्वाब, औ सपने बुनतीं हैं….

आँखें ख़्वाब, औ सपने बुनतीं हैं,

हम सब बुनते रहते हैं,

ख़ुशियों भरी ज़िंदगी के अरमान।

हमारी तरह हीं बुनकर पंछी तिनके बुन आशियाना बना,

अपना शहर बसा लेता है.

बहती बयार और समय इन्हें बिखेर देते हैं,

यह  बताने के लिये कि… 

 नश्वर है जीवन यह।

मुसाफिर की तरह चलो। 

यहाँ सिर्फ रह जाते हैं शब्द अौर विचार। 

वे कभी मृत नहीं होते।

जैसे एक बुनकर – कबीर के बुने जीवन के अनश्वर गूढ़ संदेश। 

 

 

बुनकर पंछी- Weaver Bird.

जिंदगी थी खुली किताब

जिंदगी थी खुली किताब,

हवा के झोकों से फङफङाती ।

आज खोजने पर भी खो गये

पन्ने वापस नहीं मिलते।

शायद इसलिये लोग कहते थे-

लिफाफे में बंद कर लो अपनी तमाम जिन्दगी,

खुली किताबों के अक्सर पन्नें उड़ जाया करते है ।

आसमान के बादल

आसमान के बादलों से पूछा –

कैसे तुम मृदू- मीठे हो..

जन्म ले नमकीन सागर से?

रूई के फाहे सा उङता बादल,

मेरे गालों को सहलाता उङ चला गगन की अोर

अौर हँस कर बोला – बङा सरल है यह तो।

बस समुद्र के खारे नमक को मैंने लिया हीं नहीं अपने साथ।