आख़िर क्या वजह थी

वक्त का संगीत

यह दुनिया, यह ज़िंदगी!

नये सफ़र

अकेलापन

जश्न-ए-चराग

नुज़ूम

जो इश्क़ तुमने सिखाये

ज़िंदगी में जो इश्क़ तुमने सिखाये।

जीने के जो आदाब तुमने सिखाये।

ज़माने में यूँ अकेला छोड़,

जीवन के अधूरे सफ़र में साथ छोड़,

वस्ल-ओ-हिज्र के जो तरीक़े सिखाये।

इस हिज्र ने गुरु बन ऊपरवाले से मिलाये।

वस्ल-ए-इश्क़ गुरु बन मुझे मेरा पता बताए।

अर्थ –

* वस्ल-ओ-हिज्र – मिलन और वियोग, प्रेमी

और प्रेमिका का आपस में मिलना और बिछुड़ना।

* हिज्र – अकेलापन, जुदाई, विरह, वियोग,

विछोह, त्याग।

अपना पीछा करते करते

अपना पीछा करते करते,

मुलाक़ात हुई अपनी परछाईं-ए-नक़्श से।

मिले दरिया के बहते पानी में अपने अक्स से।

मिले आईने में जाने पहचाने अजनबी शख़्स से।

मुस्कुरा कर कहा आईने ने –

बड़ी मुद्दतों के बाद मिली हो अपने आप से।

वक्त तो लगेगा जानने में, पहचानने में।

उलझे जीवन रक़्स में,

बिंब-प्रतिबिंब देख बे-‘अक्स

हो खो ना जाए यह शख़्स।

अर्थ – रक़्स – नृत्य

नीम-बाज़

कमल की अधखिली कलियाँ हों नीम-बाज़।

या नींद में डूबी आँखें नर्गिस-ए-नीम-बाज।

ख़ूबसूरती और ख़ुशबू से दोनों की कर देतीं है

दिल ख़ुश मिज़ाज।

अर्थ

*नर्गिस-ए-नीम-बाज -half opened eye (like narcissus flower)

* नीमबाज़ अध-खुला, आधा खुला आधा बंद, अधखुली,नशीली, मदहोश, मंत्रमुग्ध (प्रायः पलक, पुत्ली, आँख, कली आदि की विशेषता के लिए प्रयोग )