ज़िंदगी के रंग -228

ज़िंदगी रोज़ एक ना एक

सवाल पूछती है।

सवालों के इस पहेली में

उलझ कर, जवाब ढूँढो।

तो ये सवाल बदल देती है।

ज़िंदगी रोज़ इम्तहान लेती है।

एक से पास हो या ना हो।

दूसरा इम्तहान सामने ला देती है।

अगर खुद ना ले इम्तहान,

तो कुछ लोगों को ज़िंदगी में

इम्तहान बना देती है।

बेज़ार हो पूछा ज़िंदगी से –

ऐसा कब तक चलेगा?

बोली ज़िंदगी – यह तुम्हारा

नहीं हमारा स्कूल है।

तब तक चलेगा ,जब तक है जान।

बस दिल लगा कर सीखते रहो।

4 thoughts on “ज़िंदगी के रंग -228

  1. जीवित
    चाहते हैं
    हर सांस के साथ
    हमसे एक नए प्रश्न का उत्तर दिया

    Liked by 1 person

  2. जिंदगी के सच को बहुत सुंदर लेखन से प्रस्तुत किया है 👌🏼ये सच ही हैं ,
    जिंदगी कभी-कभी इम्तिहान के लिए पराये लोगों को ही नहीं कभी-कभी बेहद अपनों को भी सामने ला खड़ा कर देती हैं ।⚘🙏🏼

    Liked by 1 person

    1. ठीक कहा तुमने। महाभारत भी अपनों के बीच ही हुआ था। वह भी तो रिश्तों का इम्तहान था।

      Liked by 1 person

Leave a reply to hgamma Cancel reply