अक़्स !

तराशते रहें ख़्वाबों को,

कतरते रहे अरमानों को.

काटते-छाँटते रहें ख़्वाहिशों को.

जब अक़्स पूरा हुआ,

 मुकम्मल हुईं तमन्नाएँ,

साथ और हाथ छूट चुका था.

सच है …..

सभी को  मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता,

किसी को जमीं,

किसी को आसमाँ नहीं मिलता.

 

22 thoughts on “अक़्स !

    1. सभी अपने जीवन में कुछ पाने के लिए बहुत कुछ करते हैं. पर समय हमेशा एक सा नहीं रहता. तब कुछ ऐसा ही एहसास होता है.
      पढ़ने के लिए आभार.

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