सागर के दिल पर तिरती- तैरती नावें,
याद दिलातीं हैं – बचपन की,
बारिश अौर अपने हीं लिखे पन्नों से काग़ज़ के बने नाव।
नहीं भूले कागज़ के नाव बनाना,
पर अब ङूबे हैं जिंदगी-ए-दरिया के तूफान-ए-भँवर में।
तब भय न था कि गल जायेगी काग़ज की कश्ती।
अब समझदार माँझी
कश्ती को दरिया के तूफ़ाँ,लहरों से बचा
तलाशता है सुकून-ए-साहिल।
Bahut khoobsurat Likha Aapne .
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Shukriya Anurag.
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🙏🙏
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वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी… सुंदर लिखा आपने हमेशा की तरह
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तुम्हारा बहुत आभार!!
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इन्हें आत्मसात करने के लिए बहुत मुश्किल समय है। एक नया जीवन जो हमें इंतजार कर रहा है। नियम बदल दिए गए लेकिन आपको धैर्य के साथ चीजों को लेना होगा। आराम करने और अंदर सोचने का समय। हो सकता है कि बचपन का जहाज हमें मानसिक शांति दे।
यह मैं आपकी कविता को महसूस करता हूं जो मेरे अस्तित्व के अंदर पहुंचती है।
आपके लिए अच्छा सप्ताहांत रहेगा। मुझे आपको पढ़ने में मज़ा आता है
मैनुएल
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मैनुएल, आपको बहुत आभार!!
मेरी हिंदी कविता पढ़ने, प्रशंसा करने अौर हिंदी में जवाब देने के लिये।
आपकी बातें सही है। बचपन का नाव हमें मानसिक शांति देता है।
दरअसल, जब हम बच्चे होते हैं।
हम शायद ही भविष्य के बारे में सोचते हैं।
यह भोलापन हममें व्यस्क होने पर नहीं रहता है।
हम अपने बचपन को पीछे छोड़ देते हैं। यह दुख की बात है।
आपका दिन मंगलमय हो!
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भोलेपन की उम्र सबसे अच्छी उम्र होती है। मुझे आपकी भाषा में जवाब देना पसंद है। मैं आपकी कविताओं के करीब पहुँचता हूँ और अनुवादक मेरी मदद करता है।
मेरा अभिवादन
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बिलकुल ठीक कहा आपने. मेरी भाषा का सम्मान करने के लिए आभार मैनुएल.
सुप्रभात !
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जिंदगी-ए-दरिया के तूफान-ए-भँवर, सुकून-ए-साहिल – these words feel awesome to read. And your poem is tantalizing and beautiful.
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Thank you so much Gaurav.
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