दूसरी दीवाली

पहली बार देखा और सुना साल में दो बार दीवाली!

दुःख, दर्द में बजती ताली.

साफ़ होती गंगा, यमुना, सरस्वती और नादियाँ,

स्वच्छ आकाश, शुद्ध वायु,

दूर दिखतीं बर्फ़ से अच्छादित पर्वत चोटियाँ.

यह क़हर है निर्जीव मक्खन से कोरोना का,

या सबक़ है नाराज़ प्रकृति का?

देखें, यह सबक़ कितने दिन टिकता है नादान, स्वार्थी मानवों के बीच.

9 thoughts on “दूसरी दीवाली

      1. हाँ, बिलकुल सही विचार है, क्योंकि अक्सर लिखने वाले के मन में कुछ ख़्याल तो रहता हीं है.

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