एक दिन

एक दिन मेरी क़लम ,

पन्ने और मेरे

अंदर की

लेखिका

कहीं खो गई .

पूछा अपने आप से –

क्या यह राइटर्स ब्लाक है

या कुछ और ?

बड़े जद्दोजहद

के बाद समझ आया .

दरअसल सच्चे जज़्बात, दुनियादारी

के तले दबने लगते हैं.

दुनियादारी या

सच्चे जज़्बातों

की

अभिव्यक्ति में किसी

एक का हीं अस्तित्व संभव है .

अपने आप को वापस पास लिया …..

यह मेरा नया जन्म दिन है.

11 thoughts on “एक दिन

  1. बिल्कुल सही बात है यह रेखा जी । दुनियादारी और सच्चे जज़्बात में से किसी एक ही का कायम रहना मुमकिन है । दोनों एक साथ रह ही नहीं सकते ।

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  2. दरअसल सच्चे जज़्बात, दुनियादारी

    के तले दबने लगते हैं.

    बहुत ही सही कहा।

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