


India could soon have more writers than readers: Ruskin Bond
समाज में लेखकों की गिनती बढ़ना,
बुद्धिजीवियों के बढ़ने की पहचान है.
लेखक तो स्वभाविक रूप से पाठक होते है.
अच्छा लिखने की पहली शर्त है पढ़ना .
इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है कि पाठक कितने है?
आप सब इस कथन पर अपने विचार देने के लिये आमंत्रित है।
बात तो सही है और लेखकों की तादाद बढ़ने का कुछ श्रेय तो रस्किन बॉन्ड जी को भी जाता है जिन्होने ना जाने कितने दिमाग़ों को प्रेरित किया है I
और बात तो आपकी भी सौ फीसदी सही है रेखा जी क्योंकि जो लिख रहा है वो कुछ सार्थक सोच रहा है और ये क्या खुशी की बात नहीं होनी चाहिए उस दुनिया में जहाँ अभी भी निरर्थक सोच का बोलबाला सार्थक सोच से ज़यादा है I और अगर लेखक ज़यादा होंगे तो ये दुनिया एक बेहतर जगह में हीं तब्दील होगी ना की एक बदतर जगह में I
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बिलकुल सही कहा। wordpress जैसे platforms से भी लेखन को बढ़ावा मिला है।
तुम्हारे विचार भी उचित हैं – ” लोग कुछ सार्थक सोच रहा है”।
मैंने तो इस स्टेटमेंट को सकारात्मक रूप से लिया है। पर रस्किन बॉन्ड ने इसे ‘खतरा; बताया है। और उभरते हुए लेखकों को कुछ सुझाव दिए हैं। जो उचित है, लेकिन लिखने से ही तो लेखन बढ़ता है।
शुक्रिया नीरज अपने विचार बताने के लिये।
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एक तो ये है की वॉर्डप्रेस या ब्लॉगस्पोट के आने से पहले लेखन कुछ लोगों का ही विशेषाधिकार होता था…एक छोटा सा लेख छपवाना भी टेढ़ी खीर होती थी और बस कुछ लोग हीं लेखक बन सकते थे I आज ये परिदृश्या बिल्कुल बदल चुका है और लेखनी केवल एक वर्ग की ठेकेदारी नहीं रही I आज छप पाने के लिए एक विशेष पहुँच का होना बहुत आवश्यक नहीं रहा I बहरहाल ये कुछ लोगों के लिए तकलीफ़ का सबब भी है I लेकिन लेखन क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन आ चुका है और इसको नकारना असंभव है I
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यह बात बिलकुल सही है.
मैं पहले लिखती थी और पन्ने रखे रखे पीले पड़ कर खो जाते थे. कभी क़िस्मत अच्छी हुई तो एक -दो आर्टिकल अख़बार में कभी छप जाते थे.
पर अब लिखना और आप जैसे सुधी लेखक / पाठको से चर्चा करना आसान हो गया है इन प्लेटफ़ार्म और इंटरनेट के सौजन्य से .
आभार , आपके विचार अच्छे लगे.
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I don’t think so. The young generation spends more time on audio visual mediums like youtube than studies. For becoming writer reading is essential. There is decline in reading habits.
Maybe, readership is not increasing. Hence, we may have more writers than readers. Applying this this logic, Ruskin Bond is right. In fact I would be happy if what Ruskin Bond says really happened. But it is a logical impossibility.
Perhaps he is indicating to the marketing and availability of large number of mediocre e-books since self publishing has become cheap and easy.
But then, traditional publishing made it difficult for new and unknown writers to see their work published in spite of having merit.
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I agree with you Dash ji. Today”s gen is more busy in using modern technologies instead of reading and writing.
Even than , if this statement is true, I”ll take it as a positive sign.
Thank you so much for sharing your views .Personally I am interested to know the viewpoint of the Indian writers.
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