यादों को क़ैद या यादों में क़ैद ?

बड़े सिद्दत से, संजीदगी से ,

यादों को क़ैद कर रही थी .

मन में, ख़यालों में,

कुछ नई यादों में भी.

जब लगा कुछ मीठी सी

जमा हो चुकी

है यादे .

तब समझ आया

नहीं क़ैद मेरे पास कुछ भी .

मैं हीं क़ैद हूँ यादों में.

14 thoughts on “यादों को क़ैद या यादों में क़ैद ?

  1. बढ़िया ! हमारा दर्शन भी तो कहता है दुनिया हमारे भीतर उसी तरह रहती है जैसे हम दुनिया में । एक रास्ता पूरब ने निकाला दूसरा पश्चिम ने ।पर सच तो एक ही है अनंत और शाश्वत !

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    1. बुद्ध पर तो लिखने की चाहत तो है. पर अभी कुछ उलझी हूँ. तुम तो बुद्ध, लिख सकती हो. इसी बहाने Internet पर उनके बारे में पढ़ भी लोगी.
      तुम अभी student हो क्या ?

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      1. तुम लिखो, मैं quotes डालूँगी और थोड़े दिनो में लिखूँगी. किस में PhD कर रही हो किस uni से ?

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      2. Great, मुझे लगा था .literature हीं तुम्हारा विषय होगा. ज़रूर लिखो .
        तुम्हारा topic क्या है?

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