बेमानी सा दिन

एक बेमानी सा दिन …तारीख़….

ज़िंदगी से कैसे इतने गहरे जुट जाता है ?

और याद आता है वह दिन, हर दिन ?

क्यों यादों के साथ गाँठ

बाँध लेती है ये ?

लगता है

ज़िंदगी के कैलेंडर से

कुछ पन्ने हट जायें….

ग़ायब हो जायें…….

तो शायद सुकून मिले .

10 thoughts on “बेमानी सा दिन

  1. बे ने पकड़ा है मन को
    मन ने पकड़ा है हम को

    दोहरा है जोड़ यह देखो
    ज़रा मेहनत लगेगी ज़्यादा
    अगर है इससे पीछा छुड़ाना

    Liked by 1 person

    1. वाह !!!! बहुत ख़ूब , बेमन का नया अर्थ और आपकी पंक्तियाँ अच्छी लगी . शुक्रिया

      Like

Leave a reply to Drnimish Cancel reply