जिंदगी के रंग – 30

समझौता, भोलापन, भरोसा हँस पङे।

बोले हमारे साथ रहने वाले का यही हश्र होता है

पर एक बात है!

हम जिंदगी का आईना अौर दुनिया की असलियत जरुर दिखा देतें हैं।

21 thoughts on “जिंदगी के रंग – 30

  1. बहुत ही अच्छा लिखा है आपने रेखा जी। सुप्रभात लेकिन जिंदगी के बाजार में सबकुछ बिकता है लाईन का अर्थ क्लीयर नहीं हुआ किस सेंस में प्रयोग किया गया है।

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    1. रजनी जी आज की कविता के लिये आपके सुझाव के लिये मैं तहे-दिल से आपकी आभारी हूँ।
      अकसर लिखने के बाद व post करने से पहले किसी से चर्चा करती हूँ। ताकि कुछ कमी हो तो जानकारी हो जाये। पर बहुत बार ऐसे हीं post भी कर देती हूँ। पर संशय बना रहता है – ठीक लिखा है या नहीं?

      अंतिम पंक्ति को मैंने ठीक किया है, बताईगा, अर्थ क्लीयर है या नहीं। धन्यवाद आपकी समीक्षा के लिये।

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      1. रेखा जी हर इंसान का सोचने का नजरिया अलग अलग होता है। मेरे विचार से आपके ऊपर के छे लाईन में ही खूबसूरती के साथ अर्थ क्लीयर हो जा रहा है। नीचे की दो लाइन की आवश्यकता ही नहीं इस पोस्ट में। यदि जिंदगी से रिलेटेड जोडना है तो पोस्ट में सो कर दीजिएगा। धन्यवाद रेखा जी जो आपने बुरा नहीं माना और मेरे भाव को समझा हम और आप एक अच्छे दोस्त सकते हैं वर्डप्रेस पर। दोस्ती ही ऐसा रिश्ता है जिसमें कुछ सीख दो तो बुरा नहीं लगता है।

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      2. बहुत आभार ! आज थोङा व्यस्त थी। इसलिये किसी के comment का जवाब नहीं दे सकी पर आपकी बात/समालोचक अच्छी लगी। इसलिये तुरंत जवाब दिया। 🙂

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      3. फिर से आभार !!! मैं दोनों पंक्तियाँ delete कर दी हैं। सच बात तो यह है कि प्रज्ञ आलोचक-समीक्षक सौभाग्य से हीं मिलते हैं। आपका हमेशा स्वागत है मित्र।

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