Children’s Day is celebrated across India to increase awareness of the rights, care and education of children. It is celebrated on 14 November every year as a tribute to India’s First Prime Minister, Jawaharlal Nehru.

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India -14 November

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मानव , मानव को हीं कैसे ख़रीद बेच सकता है ?
मनुष्य कितना क्रूर है ? बच्चों को भी नहीं बख़्शता .
भगवान भी अक्सर सोचतें होंगे –
यह क्या बना दिया हमने ?

According to the study conducted by Disability Rights International (DRI) and Kenyan Association for the Intellectually Handicapped (KAIH), 37 per cent of the women surveyed from Nairobi said they were pressured to kill their disabled children.
If a child lives with criticism, they learn to condemn.
If a child lives with hostility, they learn to fight.
If children live with fear, they learn to be apprehensive,
If children live with pity, they learn to feel sorry for themselves,
If a child lives with ridicule, he learns to be shy.
But do not despair …
If a child lives with tolerance, they learn to be patient.
If a child lives with encouragement, they learn confidence.
If a child lives with praise, they learn to appreciate.
If a child lives with fairness, they live with justice.
If a child lives with security, they live to have faith.
If a child lives with approval, they learn to like himself.
If a child lives with acceptance and friendship.
they learn to find love in the world.

— Dorothy Law Nolte

Children’s Day – 14.11.2017
Pandit Jawaharlal Nehru once said, “The children of today will make the India of tomorrow.”
गिल्लू गिलहरी बहुत दौड़ती थी। वह जंगल ओलंपिक में भाग लेने की तैयारी कर रही थी।हर दिन सुबह उठ कर वह दूर तक दौड़ लगाती थी।उसने अपने भोजन में दूध और मेवे शामिल कर लिए थे।वह स्कूल में भी खेल-कूद में भाग लेने लगी थी।वह चाहती थी कि उसकी चुस्ती-फुर्ती बढ़ जाये। अब वह पहले की तरह हर समय टीवी और कंप्यूटर में व्यस्त नहीं रहती थी।कोच बंकु उसकी मेहनत से बहुत खुश थे।
पर जब भी कोच बंकु बंदर अभ्यास करवाते तब वह पीलू खरगोश से पीछ छूट जाती थी। पीलू ख़रगोश बड़ा घमंडी था। अभ्यास के समय पीलू आगे निकल कर सभी को जीभ चिढ़ाता। अगर कोई उससे आगे निकलने की कोशिश करता, तब वह कोच की नज़र बचा कर उसे धक्का दे कर गिरा देता। गिल्लू को लगने लगा था, वह रेस जीत नहीं पाएगी।
इस साल हिमालय नेशनल पार्क के राजा तेज़ा शेर ने अपनी सभा में जंगल ओलंपिक खेलों की घोषणा की थी। उन्होंने बताया कि खेलों से सदभावना और दोस्ती बढ़ती है। खेल हमें स्वस्थ रखते हैं। इससे हमारे जीवन में अनुशासन आता है। इसलिए जंगल में ओलंपिक खेलों का आयोजन किया जा रहा है।इसमें अन्य जंगलों को भी न्योता दिया गया है। इस ओलंपिक में अनेक प्रकार के खेलों को शामिल किया गया था। गिल्लू ने छोटे जानवरों के 1000 मीटर लंबी दौड़ मे हिस्सा लिया था।
राजा तेज़ा ने जंगलवासियों को मनुष्यों के ओलंपिक खेलो की जानकारी दी। इस खेल का आयोजन हर चौथे वर्ष किया जाता है। वे चाहते है कि हिमालय नेशनल पार्क के जंगल में ओलंपिक का आयोजन हो। सभी जानवर इस ऐलान से बहुत खुश थे। इस आयोजन के लिए खेल के मैदान तैयार किए जाने लगे। दौड़ के लिए रेस-ट्रैक बनाए जा रहे थे।
गिल्लू जी-जान से मेहनत कर रही थी। आज के दौड़ के अभ्यास में वह सबसे आगे थी। जैसे ही उसने पीछे पलट कर पास आते पीलू को देखा,वह घबरा गई। पीलू उसे जीभ दिखाते हुए तेज़ी से आगे निकल गया। गिल्लू की आँखों में आँसू आ गए। दौड़ के बाद वह आम के पेड़ के पीछे जा कर आँसू पोछने लगी। तभी कोच बंकु वहाँ आए। उन्हों गिल्लू को बिना डरे अभ्यास करने कहा। पर गिल्लू बहुत घबरा गई थी।
अभ्यास के बाद गिल्लू अपने घर पहुची। बड़े पीपल के पेड़ के सबसे ऊपर के ड़ाल के बिल में उसका घर था। पर वह घर के अंदर नहीं गई। बाहर ऊंची ड़ाल पर बैठ गई। वहाँ से सारा जंगल नज़र आता था। उसे अपने दौड़ का ट्रैक नज़र आ रहा था। कल ही प्रतियोगिता है। वह रोने लगी। उसे लग रहा था कि वह कभी पीलू से जीत नहीं पाएगी। तभी पीछे से उसकी माँ ने आवाज़ दिया- बेटा, तू तो सबसे तेज़ दौड़ती है। दौड़ तुम ही जीतोगी। गिल्लू ने हैरानी से पूछा- माँ, तुमने मुझे दौड़ते हुए कब देखा? माँ ने मुस्कुरा कर कहा- हर दिन मैं यहाँ से तुम्हें अभ्यास करते हुए देखती हूँ। गिल्लू ने सुबकते हुए पूछा- पर मैं पीलू से हार क्यों जाती हूँ? माँ ने उसके माथे पर हाथ फेरते हुए कहा- तुम अपने मन से हार का ड़र निकाल दो, और दौड़ते समय कभी पीछे मत देखो। मेरी सीख याद करते हुए दौड़ना। जीत तुम्हारी होगी।
अगले दिन गिल्लू समय पर तैयार हो कर दौड़ के ट्रैक पर पहुची। माँ ने दूर से हाथ हिलाया। दौड़ शुरू हुई। बिना पीछे देखे वह दौड़ती चली गई और वह रेस जीत गई। रेस में प्रथम आने के बाद उसने माँ से पूछा – माँ तुमने क्या जादू किया था?
माँ ने कहा- मैं ने कुछ भी नहीं किया था। बस तुम्हारे मन का डर निकल गया था। और हाँ, आगे वही बढ़ता है जो पीछे नहीं देखता । तुम दौड़ के समय बार-बार पीछे देखने मे जो समय लगाती थी। उसमें ही पीलू तुमसे आगे निकल जाता था। गिल्लू बेटा,खेल-कूद प्यार और सद्भावना बढ़ाता है,लड़ाई-झगड़ा नहीं। आज पीलू की दुष्टता रेस-ट्रैक के कैमरे में सभी को नज़र आ गई। आज दौड़ में उसने बिनी बिल्ली को धक्का दिया था। राजा तेजा ने उसे कड़ी सजा देने का ऐलान किया है और तुम्हें प्रथम पुरस्कार मिलेगा।
Bhopal – Faces of the children were reportedly stamped by the jail authorities in a bid to distinguish them from the children of the women inmates.
भोपाल सेंट्रल जेल में बंद अपने पिता से मुलाकात करने गए दो बच्चों के चेहरे पर मुहर लगाए गये।
क्या हम मशीन बन गये है ?
और काग़ज़ समझ रखा है ,
इन मासूम नाजुक चेहरों को ?
जो हथेली पर लगने वाले स्टैम्प
इनके गालों पर लगा दिया ?
त्योहार के दिन जेल में अपनों
से मिलने जाने की यह क्रूर सजा क्यों ?
शायद लोगों में मानवता …..बची ही नहीँ
या यह शक्ति – ओहदे का मद है ?
या मजाक करने का पीड़ादायक तरीका ??
क्या उनके बच्चों के साथ
ऐसा किया जाना पसंद आयेगा उन्हे ?
Bringing up children can be one of the most gratifying and at the same time one of the most terrifying of life’s activities. Today, Dr. Rekha of AccioHealth tackles behavioural issues in children with her usual sensitivity and expertise. Do send us your questions too, if you want Dr. Rekha to address them(admin@mumbaimom.com). Dr Rekha @Mumbai Mom
The Hindu, March 24, 2017—Fearing arrest, two women jump into pond, drown
News, The Indian Express, March 24, 2017--Police had raided red light area in Rajasthan’s Bharatpur. India.
Two women jumped into a pond and drowned, allegedly fearing arrest during a police raid at a red light area in Rajasthan’s Bharatpur on Tuesday, said the district administration.
The victims have been indentified as Shakko and Rachna. According to the police, the incident took place at Pachi ka Nagla village which comes under the jurisdiction of Sewar police station.
पंछियों के नगर भरतपुर में,
उसे भी आसमान में आजाद परिदें सा उङने का शौक था।
वह थी सिर्फ 13 साल की,
चाहती थी सम्मान की जिंदगी जीना।
पुलिस की छापेमारी के बाद, उसका शव मिला……..
पानी में तैरता हुआ।
पुलिस ने कहा बचने के लिए पानी में कूद गई थी,
पर रोती माँ, तन के चोट…..
कुछ और हीं कहानी कह रहे थे,
क्या उन्हें अच्छी जिंदगी जीने की चाह नहीं हो सकती?
कोठे,वेश्यालय भी तो चलते हैं सभ्य समाज की दया दृष्टि से,
क्या कभी सच सामने आयेगा?
image from internet.
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