जिंदगी के रंग -37 

तेज हवा में झोंके में झूमते ताजे खिले गुलाब 

की पंखुड़ियॉं  झड़ झड़ कर बिखरते देख पूछा –

नाराज नहीँ हो निर्दयी हवा के झोंके से ?

फूल ने कहा यह तो काल चक्र हैँ

 आना – जाना,  खिलना – बिखरना 

नियंता …ईश्वर…. के हाथों में हैँ

 ना की इस अल्हड़ नादान  हवा के  झोंके के वश में 

 फ़िर इससे कैसी  नाराजगी ? ?