तेज हवा में झोंके में झूमते ताजे खिले गुलाब
की पंखुड़ियॉं झड़ झड़ कर बिखरते देख पूछा –
नाराज नहीँ हो निर्दयी हवा के झोंके से ?
फूल ने कहा यह तो काल चक्र हैँ
आना – जाना, खिलना – बिखरना
नियंता …ईश्वर…. के हाथों में हैँ
ना की इस अल्हड़ नादान हवा के झोंके के वश में
फ़िर इससे कैसी नाराजगी ? ?