एक छोटे बच्चे ने स्कूल से आ कर अपनी माँ को एक कागज दिया। उसने कहा, “माँ, मेरे शिक्षक ने यह लेटर दिया है और कहा, इसे सिर्फ़ तुम पढ़ोगी। माँ, इसमें क्या लिखा है?” माँ ने ऊँची आवाज़ में पढ़ा- “आपका बेटा एक जीनियस है। यह स्कूल उसके लिए बहुत छोटा है और उसके लायक़ प्रशिक्षित और अच्छे शिक्षक हमारे पास नहीं हैं। कृपया आप उसे स्वयं पढ़ाएं।” बच्चे की माँ ने यही किया। आगे चल कर वह सदी का सबसे महान वैज्ञानिक बन गया। जिसने अनेक महत्वपूर्ण खोज किये।
मां की मृत्यु के कई सालों बाद, उस महान वैज्ञानिक को अपनी माँ के काग़ज़ों में अपने शिक्षक का लिखा वही पुराना पत्र मिला, जिसे उसके शिक्षक ने सिर्फ़ उसकी माँ को देने कहा था। उस वैज्ञानिक ने उसे खोला और पढ़ने लगा। पत्र में लिखा था – “आपका बेटा मानसिक रूप से कमजोर है। हम उसे अब अपने स्कूल में नहीं आने दे सकते। उसे स्कूल से निकाला जा रहा है।” यह थॉमस एडिसन के बचपन की सच्ची कहानी है। शिक्षक के नोट को पढ़ने के बाद एडिसन ने अपनी डायरी में लिखा: “थॉमस एडिसन एक मानसिक रूप से कमजोर बच्चा था जिसकी माँ ने उसे सदी के जीनियस में बदल दिया।” वाणी वह हथियार है और जो नष्ट या निर्माण, उत्थान या पतन कर सकती है।
स्टेशन के बाहर भीख मांगतीं दो विक्षिप्त सी लगती महिलाएं बैठी थी। उनका विलाप इतना करुण था कि सभी का ध्यान खींच लेता। उनके पुराने ,धूल भरे, फटे कपड़े, गंदे बिखरे बाल देखकर सभी द्रवित हो जाते। तीन दिनों से उन्होंने कुछ नहीं खाया है। यह सुनकर हर आने जाने वाले कुछ ना कुछ पैसे उनके सामने रखें डाल देते। उनके टेढ़े ,पिचके, टूटे और गंदले से अल्मुनियम के कटोरी में डाले सिक्कों की खनक से उनके चेहरे पर राहत के भाव आ जाते थे।
आज अपनी अपनी जिंदगी के भागदौड़ में सभी व्यस्त हैं। जिंदगी इतनी कठिन और रूखी हो गई है कि किसी के पास किसी दूसरे के लिए समय नहीं है। इन महिलाओं को देखकर शायद ही किसी को ख्याल आता होगा कि इनसे इनकी परेशानियां पूछी जाए। इनकी कुछ उचित सहायता की जाए। जिससे इनको इस दर्द भरी, श्रापित जिंदगी से मुक्ति मिले। भीख में कुछ छुट्टे पैसे डाल कर सभी अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान लेते हैं और आगे बढ़ जाते हैं।
दरअसल भिक्षा में पैसे देकर कर्तव्य मुक्त हो जाने का हमारा इतिहास पुराना है। प्राचीन समय से हमारा देश और हम सभी बेहद सहनशील रहे हैं। हमारे भारत में बहुत पुराने समय से भिक्षावृत्ति एक सामाजिक प्रथा रही है। प्राचीन समय से साधु-संतों और विद्यार्थियों को भिक्षा देने का चलन था। ईश्वर की खोज में लगे साधु-संत भिक्षुक के रूप में ही जिंदगी बिताते थे।
वैदिक काल से उन्हें भोजन या धन दान में देना पुण्य माना जाता रहा है। प्राचीन गुरुकुलों और आश्रमों में शिक्षण निशुल्क होती थी। वहां पढ़ने वाले विद्यार्थी अक्सर आसपास के ग्रामों से भिक्षा मांग कर जीवन चलाते थे। इस प्रथा को सामाजिक व्यवस्था के रूप में देखा जाता था।
कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि खास दिनों पर भिक्षा या दान देखकर ग्रहों के बुरे असर को कम किया जा सकता है। इसलिए हमारे सहिष्णु समाज में, भीख देने की एक सहज प्रवृत्ति है। जरूरतमंदों को मदद करने का यह एक तरीका है। पर आज इस भिक्षावृत्ति का रूप बिगड़ गया है। कुछ लोगों ने इससे गलत तरीके से धन अर्जित करने का धंधा बना लिया हैं।
स्टेशन के बाहर पीपल के विशाल पेड़ के नीचे धूप और छाया खेल रही थी। वहां बैठी दोनों भिखारी महिलाएं बेहद कमजोर और दुबली पतली थी। उनकी हड्डियां तक नजर आ रही थीं। दोपहर की धूप तेज हो गई थी । सूरज सिर के ऊपर चमक रहा था। गर्मी और तपिश बढ़ गई थी। स्टेशन पर भीड़ काफी कम हो चुकी थी। शायद अभी किसी ट्रेन के आने का समय नहीं था। भीड़-भाड़ कम देखकर दोनों भिखारन ने एक दूसरे को देखा। नजरों ही नजरों में दोनों में कुछ बातें हुई।
दोनों फटे मोटे से टाट पर बैठी थीं। एक भिखारन ने टाट के एक कोने का हिस्से उठाते हुए दूसरे को कहा – “विमला ताई, देख इधर। आज तो दिन अच्छा है। मुझे बहुत पैसे मिले हैं।” विमला ने नजरें उठाकर देखा। ढेर सारे सिक्के और रुपए देखकर बोल पड़ी – ” हां, आज तूने तो बहुत कमाएँ हैं। मुझे तो आज बिल्कुल ही पैसे नहीं मिले हैं। ना जाने जग्गू दादा आज क्या करेगा? संजू, अच्छा है तू आज मार नहीं खाएगी। लगता है आज मेरा दिन ही खराब है। दो दिनों बाद आज तो रोटी मिलने का दिन है। कम पैसे देखकर ना जाने वह हरामी ठीक से खाना भी देगा या नहीं? “
संजू ने बड़ी सावधानी से दाएं बाएं देखा। फिर धीरे से मुस्कुराकर हाथ बढ़ा कर एक मुट्ठी सिक्के विमला के अल्मुनियम के कटोरी में डाल दिया और बोली – “अब तो तू भी मार नहीं खाएगी। पर आज तु देर से क्यों आई? तू तो जानती है कि सुबह में ज्यादा लोकल ट्रेनें गुजरती है। इसलिए सुबह के समय ही ज्यादा पैसे मिलते हैं। अच्छा जाने दे, आज तो हमें रोटियां देगा ना जग्गू दादा? अच्छा बता ताई, हम इन्हें इतने पैसे कमा कर रोज-रोज देते रहते हैं। फिर भी ये हमें ठीक से खाना क्यों नहीं देता है?”
विमला ने कड़वा सा मुंह बनाया। फिर अपने होठों को विद्रूप से बिचका कर बोल पड़ी – ” तू भी बिल्कुल पागल है संजू। हम खा पी कर मोटे दिखे, तो किसे हम पर दया आएगी? सारा खेल तो पैसों का है। ज्यादा पैसे भीख में मिलने के लिए हमें गरीब, गंदा और दुर्बल तो दिखना ही होगा ना?” फिर वह सावधानी से चारों ओर नजरें दौड़ाने लगी। धूप अब तक तीखी हो गई थी। विमला ने फटी साड़ी के पल्लू से अपने चेहरा पर बह आए पसीने को पोछा। फिर बड़ी धीमी आवाज में फुसफुसा कर बोली – “ना जाने क्यों जग्गू दादा नजर नहीं आ रहा है। बड़ा कमीना है यह भी। ना जाने आज भी कहां से एक भली सी लड़की को उठा लाया है। उस लड़की ने होश में आते रोना-धोना और शोर मचाना शुरू कर दिया था।
जग्गू और उसके गुंडो के कहने पर भी जब वो चुप नहीं हुई। तब उन्होंने बेरहमी से उसे मारना शुरू कर दिया। तूने तो देखा ही है यह सब। बड़ी मुश्किल से उस लड़की को समझा-बुझाकर चुप करा पाई हूं। इन्हीं सब में इतना समय लग गया।” विमला की आंखों से आंसू बहा आए थे। उसके नाक से भी पानी बहने लगा था। उसने अपना बाहँ मोड़ा और अपने सिलाई उधड़े ब्लाउज के बाजू से अपनी आंख और नाक पोछने लगी। फिर वह धीमी आवाज में फुसफुसाने लगी – ” भले घर की लड़की लगती है। अभी कच्ची उम्र की है। जग्गू और उसके गुंडों को कीड़े पड़े।”
दोनों की बातें अभी चल ही रही थी तभी संजू ने गौर किया। उसके बिल्कुल सामने कोई व्यक्ति आकर खड़ा है। उसने संजू के कटोरे में 5 रुपए का सिक्का ऊपर से गिराया। सिक्कों की खनखनाहट से चौंक कर संजू ने बातें बंद कर दी। संजू नजरें उठाकर उसे देखने लगी। एक उम्रदराज़ पुरुष वहाँ खड़ा होकर उसे बड़े गौर से देख रहा था। उसके सारे बाल सफ़ेद थे। जिस हाँथ से उसने संजू की कटोरे में पैसा डाला, वे अधिक उम्र की वजह से काँप रहे थे।
संजू और विमला को पुरुषों की गंदी और ललची नजरों का सामना करने की आदत पड़ गई थी। इसलिए संजू ने उस व्यक्ति को देख कर भी अनदेखा कर दिया। फिर संजू ने अपनी फटी साड़ी से अपने फटे ब्लाउज को ढकने की कोशिश करने लगी। फटे ब्लाउज में आधी नग्न पीठ नजर आ रही थी। नंगी पीठ को ढकने की उसकी कोशिश असफल रही। वह व्यक्ति वही खड़ा रहा। शायद उसे कहीं जाने की जल्दी नहीं थी या कुछ कहना चाहता था।
इस बार विमला ने कड़वी और तीखी आवाज में कहा – ” क्या बात है? साहब आगे जाओ ना?” विमला, संजू से उम्र में काफी बड़ी थी। उसके आधे से ज्यादा बाल सफेद हो चुके थे। चेहरे पर झुर्रियां ही झुर्रियां थी। आंखों के नीचे कालापन था। जबकि संजू की उम्र ज्यादा नहीं थी। गरीबी की मार से दबी संजू को गौर से देखने पर वह खूबसूरत लगती थी। यह उसे देख कर समझा जा सकता था, कि उसकी खूबसूरती मैंले कपड़ों में छुप गई है।
महिला सौंदर्य के लोलुप पुरुषों के ललचाई नजरों को देखकर विमला अक्सर संजू की हिफाजत के लिए लड़ पड़ती थी। उस व्यक्ति को तब भी जाते नहीं देखकर, संजू ने अपना पुराना पैंतरा चला। वह पागलों की तरह हरकतें करने लगी और धीमी आवाज में फुसफुसा कर बोली – ” क्यों खाली पीली परेशान हो रही है ताई? जग्गू रहता तो अभी रेट तय करने लगता। देखो ज़रा बुड्ढे को। पैर क़ब्र में लटकें हैं। फिर भी…..।”
संजू ने अपनी बातें पूरी भी नहीं की थी। तभी उस व्यक्ति ने उसे धीरे से पुकारा – ” संजना, संजना, तुम संजना होना? मैं तुम्हें पहचान गया। तुम बिरार में रहने वाली गोकुल काले की बिटिया संजना ही होना ना? मैं तुम्हारा राघव काका हूं बिटिया। तू मेरी बेटी गुड़िया के साथ खेल कर बड़ी हुई है। मैं तुझे कैसे नहीं पहचानूगां? पहचाना नहीं क्या तुमने मुझे?” इसके साथ हीं उस व्यक्ति ने अपने चेहरे पर लगा हुआ मास्क हटाया।
विमला और संजू ने चौंक कर उस व्यक्ति को गौर से देखा। वह वृद्ध अपने आप हीं बोलता जा रहा था – ” तुम कहां गायब हो गई थी? तुम्हारे सारे परिवार वाले और तुम्हारे पति ने तुम्हें खोजने की बहुत कोशिश की थी। फिर थक हार कर दूसरी शादी कर ली तुम्हारे पति ने। वह बेचारा भी कितने साल इंतज़ार करता?
इतने सालों बाद आज तुम मुझे यहां, ऐसी हालत में मिली हो। तुम्हारी बेटी अब बड़ी हो गई है। बड़ी प्यारी बच्ची है। चलो मैं तुम्हें उनके पास ले चलता हूं। मेरे साथ घर चलो” संजू की आँखें ना जाने क्यों गीली हों गईं। वह अपने आप में बुदबुदाई – इतने साल? कितने साल? पर उसने कुछ जवाब नहीं दिया। संजू को चुप देख कर, उस व्यक्ति ने संजू की कलाई पकड़ ली और खींच कर अपने साथ ले जाने लगा। विमला घबराहट में संजू की दूसरी कलाई पकड़कर अपनी ओर खींचने लगी और शोर मचाने लगी। इतने हो हल्ला का नतीजा यह हुआ कि वह चारों तरफ भीड़ इकट्ठी हो गई।
कुछ देर संजू खाली-खाली नजरों से उस व्यक्ति को घूरती रही। तभी अचानक ना जाने क्या हुआ। संजू पर जैसे पागलपन का दौरा पड़ गया संजू अपना माथे के बाल खींच खींच कर पागलों की तरह चिल्लाने लगी। विमला ताई ने संजू का। चेहरा देखा और वह भी अचानक बिल्कुल गुमसुम और चुप हो गई।
उस वृद्ध व्यक्ति ने हार नहीं मानी। उसने संजू का हाथ ज़ोरों से पकड़ लिया और अपने साथ खींच कर ले जाने लगा। इतनी भीड़ और हल्ला सुनकर पास की चाय की गुमटी पर बैठकर चाय पीते हुए पुलिस के कुछ सिपाही वहां आ गए। पुलिस वाले ने बीच-बचाव किया। पर वह व्यक्ति टस से मस नहीं हो रहा था। वह अपनी बात पर अड़ा हुआ था। अंत में पुलिस वाले संजू, विमला और उस व्यक्ति को लेकर पुलिस स्टेशन चले गए।
वह व्यक्ति राघव, पुलिस इंस्पेक्टर को पूरी कहानी सुनाने लगा। यह घटना 1983 की है। संजना एक बैंक में काम करती थी। रोज वह अपने सहयोगियों के साथ लोकल ट्रेन से ऑफिस चर्चगेट आती जाती थी। वह बड़ी खुशमिजाज, जिंदगी से भरपूर, कम उम्र की एक खूबसूरत विवाहित महिला थी।
उस दिन वह बड़ी ख़ुश थी। अगले दिन उसकी बेटी का जन्मदिन था। जिसे वह बड़े धूमधाम से मनाना चाहती थी। उसने अपने ऑफिस में सभी को अपने घर, विरार आमंत्रित किया। उस दिन ऑफिस से घर से लौटते समय वह लोकल ट्रेन से जोगेश्वरी में उतर गई। उसने अपनी सहेलियों को बताया, उसे वहां अपनी ननद के घर उन्हें निमंत्रण देने जाना है।
लेकिन उसके बाद वह कभी घर नहीं लौटी। पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई काफी छानबीन होती रहा। पर कुछ नतीजा नहीं निकला। इतने वर्षों में उसके पति ने दूसरी शादी कर ली है। संजना की बेटी बड़ी हो चुकी है। संजना के माता पिता नहीं रहे। उसके भाई की शादी हो गई है। संजू और विमला वहीं सामने बेंच पर बैठी सब बातें सुनती रहीं।
आज वर्षों बाद संजना अपने पड़ोसी को इस हालत में मिली है। राघव ने इंस्पेक्टर से थोड़ा वक्त मांगा ताकि वह संजना के भाई को बुला कर ला सके। इंस्पेक्टर के आश्वासन देने पर राघव संजना के भाई को बुलाने चला गया। पुलिस इन्स्पेक्टर ने विमला और संजू वही एक बेंच बैठ कर इंतज़ार करने कहा।
वृद्ध राघव के जाने के बाद विमला ताई संजू के बिल्कुल बगल में खिसक आई और बिलकुल धीमी आवाज़ में बोली – “घबरा मत संजू। पर मुझे तू एक बात बता, कि क्या यह आदमी सच बोल रहा था?” संजू ने विमला ताई की हथेलियां अपनी हथेली में कसकर पकड़ लिया। अपने सूखे पापड़ीयाये होठों पर अपनी जीभ फेराई । उसकी आँखें डबडबा आईं थी। बेहद सहमी और धीमी आवाज में संजू बोल पड़ी – ” हां यह बिल्कुल सच बोल रहा है ताई। जिस दिन मेरी किडनैपिंग हुई। उस दिन मैं लोकल ट्रेन से जोगेश्वरी में से उतर कर ऑटो में बैठी। वहाँ सड़कें थोड़ी सुनसान थीं। अँधेरा घिर आया था।अचानक ना जाने बगल में बैठे व्यक्ति ने क्या किया। मैं बेहोश हो गई। होश में आने पर मैंने अपने को जग्गू दादा के अड्डे पर पाया। तब समझ आया की ऑटो में बैठे अन्य दो लोग और ड्राइवर सभी जग्गू के आदमी थे।
आगे की तो सारी कहानी और मेरी सारी जिंदगी तू जानती है।” विमला ताई ने उसकी हथेलियों को और कसकर पकड़ लिया और बोल पड़ी – ” पागल है क्या तू? इतना अच्छा मौका मिला है। चुपचाप चली क्यों नहीं जाती वापस? इस नर्क में जीने का क्या फायदा? संजू के दुबले-पतले गालों पर आंसू बहने लगे थे। उसने उन्हें पोंछने की कोशिश नहीं की। विमल ताई को देख कर बोल पड़ी – ” ताई तुझे क्या लगता है मैं वापस नहीं जाना चाहती हूं? आज तक हर रात यही सपना देखा कि मेरा पति और परिवार वाले मुझे यहां से बचा कर ले जाएंगे। मैं फिर से अपनी खुशहाल जिंदगी में वापस लौट जाऊंगी।”
संजू दो मिनट मौन हो गई। फिर उसने दबी जबान में बोलना शुरू किया – ” ताई तूने गौर किया ना? राघव काका मुझे ले जाना चाह रहे थे। तब चारों तरफ से जग्गू के गुंडों ने घेर रखा था। एक नें मेरे कानों में धीरे से कहा – ” बिल्कुल चुप रह। चाकू के एक हीं वार से बुड्ढे की आँतें यहां जमीन पर फैल जाएंगी। इस बुड्ढे की बेटी-वेटी है क्या? तेरी सहेली थी ना इसकी बेटी? बता उसे भी उठा लाएंगे। उसके साथ तेरा मन लगा रहेगा।”
अब तू ही बता ताई क्या वह हमें इतनी आसानी से यहां से जाने देंगे? और अगर मैं निकल कर चली भी गई, तब कहां जाऊंगी? तूने सुना नहीं क्या ? पति ने दूसरी शादी कर ली है। बेटी बड़ी हो गई है। मेरी जिंदगी की कहानी उसकी जिंदगी बर्बाद कर देगी। भाई अपने परिवार के साथ व्यस्त होगा। माता-पिता रहे नहीं। मेरी नौकरी भी जा चुकी है। मुझे तो याद हीं नहीं रहा था कि कितने साल बीत गए हैं। दुनिया बहुत आगे निकल गई है। इस नई दुनिया के लोगों के बीच मेरी कोई जगह नहीं।
इतने साल तक इस माहौल में रहने के बाद, बदनामियां क्या पीछा छोड़ेंगीं? क्या उस दुनिया में किसी को मेरा इंतजार है? क्या कोई मुझे अपने साथ रखना चाहेगा? शुरू के कुछ साल तो नशीली दवाओं के इंजेक्शन में मुझे कुछ होश ही नहीं रहा। अब तो उस नशे की आदी हो चुकी हूं। दिमाग भी इन नशे की दवाइयों के बिना पागल हो जाता है। अब बाकी जिंदगी भी अब इसी नर्क में कटेगी। यही अब हमारी दुनिया बन गई है ताई।” बोलते बोलते धीरे से सिसक पड़ी संजू। संजू थोड़ा रुकी और फिर बोल पड़ी – “ताई, जब तक यह बाजार सजता रहेगा। तब तक औरतों किड्नैप होतीं रहेंगी, बिकती रहेंगी । यह सब चलता रहेगा। अगर खरीदारी ना रहे। तब ना समय बदल सकता है। जहां भी चरित्र की बात होती है, लोग औरतों पर क्यों उंगलियां उठाते हैं? क्या औरत कभी भी अकेली चरित्रहीन हो सकती है?
तभी पुलिस स्टेशन में जग्गू दादा अपने कुछ गुंडों के साथ पहुंचा। उसने इंस्पेक्टर को देखते हुए कहा – ” साहब यह मेरी बहन है। इसका दिमाग बिल्कुल खराब है। बिल्कुल पगला गई है। पागलपन में या ना जाने क्या-क्या करती रहती है। हम लोग गरीब आदमी हैं साहब। पेट भरने के लिए भीख मांगने चली आती है यह। क्या इसे मैं अपने साथ घर ले जा सकता हूं?” पुलिस इंस्पेक्टर ने प्रश्न भरी नजरों से संजू की ओर देखा। वह देर कुछ सोचता रहा। फिर उसने संजू से पूछा – ” क्या तेरा नाम संजना है? जो बात राघव ने कही क्या वह सच है? या यह तेरा भाई है?” संजू की हथेलियां पसीने से भीग गई थी। उसकी कांपती हथेलियों को विमला ने धीरे से सहलाया। इस बार संजू ने सिर उठाया। इंस्पेक्टर को देखकर बोली – ” साहब मैं किसी को नहीं जानती। किसी संजना को भी नहीं जानती। यह तो मेरा भाऊ मुझे लेने आ गया है। मैं तो गरीब औरत है। मैं क्या जानेगी बैंक की नौकरी? मैं घर जाएगी। मैं इसके साथ घर जाएगी।”
अपनी बात पूरी करते-करते संजू उठ खड़ी हुई। विमला की बाँहें खींचते खींचते वह पुलिस स्टेशन से निकली और चुपचाप आगे बढ़ गई। पीछे पीछे जग्गू भी निकल आया।
यह एक सच्ची घटना पर आधारित है। मेरी एक करीबी मित्र के अनुरोध पर मैंने इसे कहानी का रूप दिया है। अफसोस की बात है कि दुनिया इतनी आगे बढ़ गई है। फिर भी समाज में महिलाओं और बच्चों के साथ इस तरह के अन्याय होते रहते हैं। भिक्षावृत्ति, फ्लेश ट्रेडिंग, ह्यूमन ट्रैफिकिंग, और्गेन ट्रैफ़िकिंगजैसे अनेकों अपराध आज के सभ्य समाज पर कलंक है।
Picture clicked by Chandni Sahay, on 9th October 2018 at Masaimara, Kenya, Africa is showcased in the photography show “Pratibimb” -9th edition, held between 29th November – 1st December, 2019 at Raja Ravi Verma art gallery Pune.
विनीता सहाय गौर से कटघरे मे खड़े राम नरेश को देख रही थीं। पर उन्हे याद नहीं आ रहा था, इसे कहा देखा है? साफ रंग, बाल खिचड़ी और भोले चेहरे पर उम्र की थकान थी। साथ ही चेहरे पर उदासी की लकीरे थीं।वह कटघरे मे अपराधी की हैसियत से खड़ा था।वह आत्मविश्वासविहीन था।
लग रहा था जैसे उसे दुनिया से कोई मतलब ही नहीं था। वह जैसे अपना बचाव करना ही नहीं चाहता था।कंधे झुके थे।शरीर कमजोर था। वह एक गरीब और निरीह व्यक्ति था। लगता था जैसे बिना सुने और समझे हर गुनाह कबूल कर रहा था। ऐसा अपराधी तो उन्होंने आज तक नहीं देखा था। उसकी पथराई आखों मे अजीब सा सूनापन था, जैसे वे निर्जीव हों।
लगता था वह जानबूझ कर मौत की ओर कदम बढ़ा रहा था। जज़ साहिबा को लग रहा था- यह इंसान इतना निरीह है। यह किसी का कातिल नहीं हो सकता…
The presiding deity of the temple is Goddess Chattushringi, also known as Goddess Ambareshwari. She is also considered as the presiding deity of the city of Pune.
One of the fascinating things about the temple is that, the Chaturshringi temple has a miniature scale model of its entire premises displayed at the entrance.
Chattushringi (Chattu means four) is a mountain with four peaks. The Chattushringi temple is 90 feet high and 125 feet wide and is a symbol of power and faith.
The temple is on the slope of a hill on Senapati Bapat Road. It is said to have been built during the reign of the Maratha king Shivaji.
Magarpatta is a beautiful, eco-friendly, green cyber city . It has schools, Temple, commercial zone, residential neighbourhoods, a multi specialty hospital, Season shopping mall, multiple restaurants, a gymkhana and a large park called Aditi Garden.
Misty Mist Fountain Welcomes the visitors.
Clean and wide roads , trimmed grasses n hedges !!!!!
Another beautiful water fountain……..
Calm and quiet Mahalaxmi Temple.
Gymkhana – Gym, Beauty parlour, club swimming pool and steam bath , all in one place.
आसाम का गौहाटी शहर विख्यात कामख्या मंदिर के लिए जाना जाता है। यह एक शक्ति पीठ है। यह मंदिर वर्तमान कामरूप जिला में स्थित है। माँ कामख्या आदिशक्ति और शक्तिशाली तांत्रिक देवी के रूप में जानी जाती हैं। इन्हे माँ काली और तारा का मिश्रित रूप माना जाता है। इनकी साधना को कौल या शक्ति मार्ग कहा जाता है। यहाँ साधू-संत, अघोरी विभिन्न प्रकार की साधना करते हैं।
आसाम को प्राचीन समय में कामरूप देश या कामरूप-कामाख्या के नाम से जाना जाता था। यह तांत्रिक साधना और शक्ति उपासना का महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता था। प्राचीन काल में ऐसी मान्यता थी कि कामरूप- कामाख्या के सिद्ध लोग मनमोहिनी मंत्र तथा वशीकरण मंत्र आदि जानते है। जिस के प्रभाव से किसी को भी मोहित या वशीभूत कर सकते थे।
वशीकरण मंत्र —
ॐ नमो कामाक्षी देवी आमुकी मे वंशम कुरुकुरु स्वाहा|
गौहाटी सड़क मार्ग, रेल और वायुयान से पहुँचा जा सकता है। गौहाटी के पश्चिम में निलांचल/ कामगिरी/ कामाख्या पर्वत पर यह मंदिर स्थित है। यह समुद्र से लगभग 800 फीट की ऊंचाई पर है। गौहाटी शहर से मंदिर आठ किलोमीटर की दूरी पर पर्वत पर स्थित है। मंदिर तक सड़क मार्ग है।
वास्तु शिल्प – ऐसी मान्यता है कि इसका निर्माण 8वीं सदी में हुआ था। तब से 17वीं सदी तक अनेकों बार पुनर्निर्माण होता रहा। मंदिर आज जिस रूप में मौजूद है। उसे 17वीं सदी में कुच बिहार के राजा नर नारायण ने पुनर्निमित करवाया था। मंदिर के वास्तु शिल्प को निलांचल प्रकार माना जाता है। मंदिर का निर्माण लंबाई में है। इसमें पूर्व से पश्चिम, चार कक्ष बने हैं। जिसमें एक गर्भगृह तथा तीन अन्य कक्ष हैं।
ये कक्ष और मंदिर बड़े-बड़े शिला खंडों से निर्मित है तथा मोटे-मोटे, ऊँचे स्तंभों पर टिकें हैं। मंदिर की दीवारों पर अनेकों आकृतियाँ निर्मित हैं। मंदिर के अंदर की दीवारें वक्त के थपेड़ों और अगरबत्तियों के धुएँ से काली पड़ चुकी हैं। तीन कक्षों से गुजर कर गर्भ गृह का मार्ग है। मंदिर का गर्भ -गृह जमीन की सतह से नीचे है। पत्थर की संकरी, टेढ़ी-मेढ़ी सीढ़ियों से नीचे उतर कर एक छोटी प्रकृतिक गुफा के रूप में मंदिर का गर्भ-गृह है। यहाँ की दीवारें और ऊंची छतें अंधेरे में डूबी कालिमायुक्त है।
इस मंदिर में देवी की प्रतिमा नहीं है। वरन पत्थर पर योनि आकृति है। यहाँ पर साथ में एक छोटा प्रकृतिक झरना है। यह प्रकृतिक जल श्रोत इस आकृति को गीली रखती है। माँ कामाख्या का पूजन स्थल पुष्प, सिंदूर और चुनरी से ढका होता है। उसके पास के स्थल/ पीठ को स्पर्श कर, वहाँ के जल को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
उसके बगल में माँ लक्ष्मी तथा माँ सरस्वती का स्थान/ पीठ है। यहाँ बड़े-बड़े दीपक जलते रहते हैं। गर्भगृह से ऊपर, बाहर आने पर सामने अन्नपूर्णा कक्ष है। जहाँ भोग प्रसाद बनता है। मंदिर के बाहर के पत्थरों पर विभिन्न सुंदर आकृतियाँ बनी हैं। मंदिर का शिखर गोलाकार है। यह शिखर मधुमक्खी के गोल छत्ते के समान बना है।
बाहर निकाल कर अगरबत्ती व दीपक जलाने का स्थान बना है। थोड़ा आगे नारियाल तोड़ने का स्थान भी निर्दिष्ट है। पास के एक वृक्ष पर लोग अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए धागा लपेटते हैं। मंदिर परिसार में अनेक बंदर है। जो हमेशा प्रसाद झपटने के लिए तैयार रहते है। अतः इनसे सावधान रहने की जरूरत है।
किंवदंतियां-मंदिर और देवी से संबंधित इस जगह की उत्पत्ति और महत्व पर कई किंवदंतियां हैं।
1) एक प्रसिद्ध कथा शक्तिपीठ से संबंधित है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ सती की योनि गिरी थी। जो सृष्टि, जीवन रचना और शक्ति का प्रतीक है। सती भगवान शिव की पहली पत्नी थी। सती के पिता ने विराट यज्ञ का आयोजन किया। पर यज्ञ के लिए शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया था। फलतः सती ने अपमानित महसूस किया और सती ने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ की आग में कूद कर अपनी जान दे दी।
इस से व्यथित, विछिप्त शिव ने यज्ञ कुंड से सती के मृत शरीर को उठा लिया। सती के मृत शरीर को ले कर वे अशांत भटकने लगे। शिव सति के मृत देह को अपने कन्धे पर उठा ताण्डव नृत्य करने लगे। फ़लस्वरुप पृथ्वी विध्वंस होने लगी। समस्त देवता डर कर ब्रम्हा और विष्णु के पास गये और उनसे समस्त संसार के रक्षा की प्रार्थन की। विष्णु ने शिव को शांत करने के उद्देश्य से अपने चक्र से सती के मृत शरीर के खंडित कर दिया। फलतः सती के शरीर के अंग भारत उपमहाद्वीप के विभिन्न स्थानों पर गिर गए। शरीर के अंग जहां भी गिरे उन स्थानों पर विभिन्न रूपों में देवी की पूजा के केंद्र बन गए और शक्तिपीठ कहलाए। ऐसे 51 पवित्र शक्तिपीठ हैं। कामाख्या उनमें से एक है। संस्कृत में रचित कलिका पुराण के अनुसार कामाख्या देवी सारी मनोकामनाओं को पूरा करनेवाली और मुक्ति दात्री शिव वधू हैं।
कामाक्षे काम सम्मपने कमेश्वरी हरी प्रिया, कामनाम देही मे नित्यम कामेश्वरी नामोस्तुते||
अंबुवासी पूजा- मान्यता है कि आषाढ़ / जून माह में देवी तीन दिन मासिक धर्म अवस्था में होती हैं। अतः मंदिर बंद कर दिया जाता है। चौथे दिन मंदिर सृष्टि, जीवन रचना और शक्ति के उपासना उत्सव के रूप में धूम धाम से खुलता है।मान्यता है कि इस समय कामाख्या के पास ब्रह्मपुत्र नदी लाल हो जाती है।
2) एक अन्य किवदंती के अनुसार असुर नरका कमख्या देवी से विवाह करना चाहता था। देवी ने नरकासुर को एक अति कठिन कार्य सौपते हुए कहा कि अगर वह एक रात्रि में निलांचल पर्वत पर उनका एक मंदिर बना दे तथा वहाँ तक सीढियों का निर्माण कर दे। तब वे उससे विवाह के लिए तैयार हैं। दरअसल किसी देवी का दानव से विवाह असंभव था। अतः देवी ने यह कठिन शर्त रखी। पर नरकासुर द्वारा इस असंभव कार्य को लगभग पूरा करते देख देवी घबरा गई। तब देवी ने मुर्गे के असमय बाग से उसे भ्रमित कर दिया। नरकासुर ने समझा सवेरा हो गया है और उसने निर्माण कार्य अधूरा छोड़ दिया और शर्त हार गया। नरकासुर द्वारा बना अधूरा मार्ग आज मेखला पथ के रूप में जाना जाता है।
3)एक मान्यता यह भी है कि निलांचल/ कामगिरी/ कामाख्या पर्वत शिव और सती का प्रेमस्थल है। देवी कामाख्या सृष्टि, जीवन रचना और प्रेम की देवी है और यह उनका प्रेम / काम का स्थान रहा है। अतः इस कामाख्या कहा गया है।
4) एक कहानी के अनुसार कामदेव श्राप ग्रस्त हो कर अपनी समस्त काम शक्ति खो बैठे। तब वे इस स्थान पर देवी के गर्भ से पुनः उत्पन्न हो शापमुक्त हुए।
5)एक कथा संसार के रचनाकार और सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा से संबन्धित है। इस कहानी के अनुसार देवी कामाख्या ने एक बार ब्रह्मा से पूछा कि क्या वे शरीर के बिना जीवन रचना कर सकते हैं। ब्रह्मा ने एक ज्योति पुंज उत्पन्न किया। जिसके मध्य में योनि आकृति थी। यह ज्योति पुंज जहाँ स्थापित हुई उस स्थान को कामरूप-कामाख्या के नाम से जाना गया।
6) एक अन्य मान्यतानुसार माँ काली के दस अवतार अर्थात दस महाविद्या देवी इसी पर्वत पर स्थित है। इसलिए यह साधना और सिद्धी के लिए उपयुक्त शक्तिशाली स्थान माना जाता है। ये दस महाविद्या देवियाँ निम्नलिखित हैं– भुवनेश्वरी, बगलामुखी, छिन्मस्ता, त्रिपुरसुंदरी, तारा, घंटकर्ण, भैरवी, धूमवती, मातांगी व कमला।
कामख्ये वरदे देवी नीलपर्वतवासिनी, त्वं देवी जगत्म मातर्योनिमुद्रे नामोस्तुते ||
तारापीठ, साहपुर ग्राम पंचायत, मारग्राम पुलिस स्टेशन का एक छोटा सा गाँव है|तारापीठ बीरभूम जिले में है।यहाँ तारापीठ रेलवे स्टेशन है। रामपुर हाट निकटतम बड़ा रेलवे स्टेशन है जो यहाँ से लगभग 5-6 किमी दूर है। आसनसोल रेलवे स्टेशन भी यहाँ से करीब है। यहाँ रुकने के लिए अनेक होटल हैं। मंदिर मेँ दर्शन के दो मार्ग है। पहला सामान्य दर्शनार्थियों के लिए जो निःशुल्क है। दूसरा मार्ग उन विशिष्ट लोगों के लिए है जो 200/ रु का प्रवेश टिकिट लेते हैं। उन्हें आविलम्ब दर्शन की सुविधा प्राप्त होती ही। मंदिर दोपहर मेँ एक से दो बजे बंद कर दिया जाता है। इस समय माँ को भोग लगाया जाता है। यह हमलोगों के लिए एक यादगार यात्रा थी। तारापीठ के पहले हमलोगों ने वक्रेश्वर महादेव का दर्शन भी किया। शिव (वक्रेश्वर महादेव) और शक्ति (माँ तारा) का दर्शन सौभाग्य की बात है। वक्रेश्वर महादेव के मंदिर का स्थान गर्मपानी के नाम से भी जाना जाता है।
मंदिर और देवी का रूप – तारापीठ भारत भर में स्थित 51 पवित्र शक्ति पीठ में से एक है। पश्चिम बंगाल में द्वारका नदी के तट पर तारापीठ हरे-भरे धान के खेतों के बीच मैदानों में स्थित है। यह झोपड़ियों और तालाबों वाला एक ठेठ बंगाली गांव है। मंदिर लाल ईंटों की मोटी दीवारों से निर्मित है। इसमें कई मेहराब और एक शिखर है।
देवी गर्भगृह में स्थित है। गर्भगृह में माँ तारा की जिस मूर्ति को भक्त सामान्य रूप से देखतें है, वह वास्तव मेँ एक तीन फीट की धातु निर्मित मूर्ति है। जिसे वास्तविक पाषाण प्रतिमा पर सुशोभित किया जाता है। इसे देवी का राजवेश कहा जाता है।मान्यता है कि देवी शिला मुर्ति के रुप में सभी को दर्शन नही देना चाहती थीं। अतः उन्होंने एक अन्य आवरण या राजवेश भी उपलब्ध करवाया। यह राजवेश देवी का सौम्य रूप है। देवी के माथे पर लाल कुमकुम की बिंदी है। पुजारी इस कुमकुम / सिंदूर का एक तिलक माँ तारा के आशीर्वाद स्वरूप भक्तों के माथे पर लगाते हैं। माँ तारा की मौलिक मूर्ति देवी के रौद्र और क्रोधित रूप को दिखाता है। इसमें माँ तारा को बाल शिव को दूध पिलाते दर्शाया गया है। यह मूर्ति पत्थर की है। देवी के गले मेँ मुंडमाल है। मुख और जिव्हा रक्तरंजित है। चार हाथों मेँ विभिन्न हथियार सुशोभित है। जब 4:30 बजे सुबह मंदिर खुलता है तब केवल भाग्यशाली भक्तों को देवी के इस रूप के दर्शन का मौका मिलता है। मंदिर के परिसर में पवित्र “जीवित तालाब” निर्मित है।किवदंती है कि इस ताल में मृत को भी जीवित करने की शक्ति थी।
चढ़ावा या भोग – यहाँ भक्तगण समान्यतः नारियल, पेड़ा, सिंदूर, अगरू, चन्दन, गुलाबजल, आलता, फल, चुनरी, कमल, कनेर, नीला अपराजिता, जवा पुष्प या गेंदे की माला, बेलपत्र, नीली या लाल साड़ियां चढ़ते हैं। देवी को रुद्राक्षा माला भी प्रिय है क्योंकि मान्यता है कि रुद्राक्ष भगवान रुद्र (शिव का क्रोधी मुद्रा) के नेत्र के अश्रु बिन्दु से निर्मित हुए है।
कच्ची हल्दी का माला और नींबू की माला भी देवी को प्रिय है। गर्भगृह के ठीक बाहर माँ तारा के युगल चरण द्व्य हैं। जिस पर आलता डाला जाता है। तांत्रिक पद्धति के अनुसार कुछ भक्त आसव या मदिरा की बोतलें और अस्थि निर्मित माला का प्रयोग पूजा के लिए करते हैं। यहाँ छाग या खस्सी की बलि भी दी जाती है। मछली, खीर, दही, शहद मिश्रित चावल, शोल मछली, खस्सी का मांस आदि भी देवी को प्रिय है। वृहदनील तंत्र के दूसरे अध्याय में इसका निम्नलिखित वर्णन मिलता है-
बंगाल वामाचार, तंत्र साधना और शक्ति उपासना का प्राचीन केंद्र है। तारापीठ मेँ भी तंत्र साधना प्राचीन कल से प्रचलित है। श्मशान भूमि शक्ति उपासना का अभिन्न अंग माना जाता है। श्मशान भूमि जंगल परिवेश के बीच, सामाजिक जीवन और व्यवस्था से दूर होता है। तारापीठ मेँ श्मशान भूमि शहर की सीमा के अंत में नदी किनारे पर स्थित है। इस श्मशान भूमि और मंदिर में बामखेपा अवधूत ने एक भिक्षुक के रूप में साधना किया था। उन्होंने माँ तारा की पूजा करने के लिए अपने पूरा जीवन समर्पित कर दिया। उनका आश्रम भी मंदिर के करीब स्थित है। मंदिर परिसर मेँ उनकी मूर्ति स्थापित है। अपने गुरु संत कैलाशपति के संरक्षण मेँ बामखेपा अवधूत ने योग का ज्ञान और तांत्रिक सिद्धियाँ प्राप्त की थीं।
तांत्रिक साधकों का मानना है कि माँ उग्र तारा का पसंदीदा स्थान श्मशान भूमि है। इसलिए बहुधा देवी तारा का मूर्तिरूप में चित्रण श्मशान भूमि के आस-पास किया जाता है। तारा,श्मशान भूमि, हड्डियों और कंकाल की ओर आकर्षित होती है, इस विश्वास के साथ तांत्रिक साधक यहाँ साधना करने के लिए आते है।
कई साधु स्थायी रूप से यहां रहते हैं। राख लिप्त साधु बरगद के पेड़ के नीचे या मिट्टी के झोपड़ियों मे रहते हैं। उनकी झोपड़ियों के दीवार तारायंत्र, लाल सिंदूर आरक्त खोपड़ी से अलंकृत होती हैं। प्रवेश द्वार पर गेंदा की माला और खोपड़ी से सजी माँ तारा की आकृति, त्रिशूल और जलती हुई धुनी आम दृश्य है। वे मानव के साथ-साथ गीदड़ों, गिद्धों की खोपड़ी और साँप की खाल / केंचुली से भी झोपड़ियों को सजाते है। पूजा और तांत्रिक उद्देश्यों के लिए इन वस्तुओं का इस्तेमाल होता हैं।
किंवदंतियां- मंदिर और देवी से संबंधित इस जगह की उत्पत्ति और महत्व पर कई किंवदंतियां हैं।
1) एक प्रसिद्ध कथा शक्तिपीठ से संबंधित है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ सती की तीसरी आंख का तारा गिरा था जो शक्ति, विनाश और क्रोध का प्रतीक है। सती भगवान शिव की पहली पत्नी थी। सती के पिता ने विराट यज्ञ का आयोजन किया। पर यज्ञ के लिए शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया था। फलतः सती ने अपमानित महसूस किया और सती ने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ की आग में कूद कर अपनी जान दे दी। इस से व्यथित, विछिप्त शिव ने यज्ञ कुंड से सती के मृत शरीर को उठा लिया।
सती के मृत शरीर ले कर वे अशांत भटकने लगे। शिव सति के मृत देह को अपने कन्धे पर उठा ताण्डव नृत्य करने लगे। फ़लस्वरुप पृथ्वी विध्वंस होने लगी। समस्त देवता डर कर ब्रम्हा और विष्णु के पास गये और उनसे समस्त संसार के रक्षा प्रार्थन की। विष्णु ने शिव को शांत करने के उद्देश्य से अपने चक्र से सती के मृत शरीर के खंडित कर दिया। फलतः सती के शरीर के अंग भारत उपमहाद्वीप के विभिन्न स्थानों पर गिर पड़े। शरीर के अंग जहाँ भी गिरे उन स्थानों पर विभिन्न रूपों में देवी की पूजा के केंद्र बन गए और शक्तिपीठ कहलाए। ऐसे 51 पवित्र शक्तिपीठ हैं। तारापीठ उनमें से एक है। माना जाता है कि यहाँ सती के शक्तिशाली तृतीय नेत्र का तारा गिरा था। इसलिया यह तारापीठ कहलाया और शक्ति, विनाश और क्रोध का प्रतीक माना गया। अतः इसे साधना के लिए शक्तिशाली स्थल माना गया है।
२) दूसरी कहानी यहाँ स्थापित देवी के मौलिक मूर्ति से संबन्धित है। ब्रह्मांड को बचाने के लिए महासागरों के मंथन से निकला हलाहल यानि गरल पान शिव ने किया। जहर के प्रभाव से बचने के लिए शिव ने गरल को गले मेँ धारण कर लिया। जिससे उनका गला नीला पड़ गया और शिव नीलकंठ नाम से पुकारे जाने लगे।
इस कालकूट जहर को पीने से उन्हे गले में तीव्र जलन उत्पन्न हुई। तब तारा के रूप में सती ने जहर के प्रभाव से शिव को राहत देने के लिए अपना स्तनपान कराया। उन्होंने शिव को बालरूप में परिवर्तित कर, अपनी गोद में ले कर स्तनपान करवाया। जिससे शिव के गले की जलन शांत हुई। तारापीठ की मौलिक पाषाण प्रतिमा में यहीं रूप चित्रित किया गया है।
3) ऐसी मान्यता है कि महर्षि वशिष्ठ, देवी तारा की पूजा करने और हिंदुओं के बीच उसकी पूजा के महत्व का प्रसार करने वाले पहले व्यक्ति थे। सतयुग में महर्षि वशिष्ठ के पिता भगवान ब्रह्मा ने उन्हें सिद्धि प्राप्त करने के लिए देवी तारा की पूजा करने कहा। ब्रह्मा जी ने अपने पुत्र वशिष्ठ को तारा मन्त्र की दिक्षा दी और मन्त्र सिद्ध करने कहा।
पिता के आज्ञानुसार वशिष्ठ निलान्चल पर्वत पर गये और देवी माँ की साधना करने लगे। परन्तु सिद्धि नहीं प्राप्त हुई। तब वे अपने पिता ब्रह्मा के पास गये। ब्रह्मा जी ने उन्हें निलान्चल छोड नील-पर्वत पर तपस्या करने कहा। परन्तु उन्हें इस बार भी सफलता नहीं मिली। अतः उन्हें लगा कि इस मंत्र को सिद्ध नही किया जा सकता है। तभी आकाशवाणी हुई,वशिष्ठ तुम चीन देश जाओ और वहाँ भगवान बुद्ध से साधन का सही विधि और क्रम जान कर मेरी अराधना करो।
वशिष्ठ मुनि चीन पहुंचे। वहाँ मुनि ने देखा कि भगवान बुद्ध मदिरा, माँस, मतस्य, नृत्य करती हुई नृत्यागंनायों के साथ व्यस्त है। यह देख वे मायूस हो कर वहाँ से लौटने लगे। तब बुद्ध ने उन्हें रुकने कहा। जब वशिष्ठ मुनि ने पुनः बुद्ध की ओर देखा तो वो चकित रह गये।
भगवान बुद्ध शान्त बैठे थे और ध्यान योग में थे। उसी तरह नृत्यागनाऐं भी आसन लगा कर बैठी थीं, मदिरा, माँस, मतस्य आदी सभी वस्तुये, पुजन सामाग्रियों में परिवर्तित हो गईं थीं। अन्तर्यामी बुद्ध ने वशिष्ठ मुनि को माँ तारा के वामाचार पूजन की विधि बताई । उन्होंने बताया कि बैधनाथ धाम के १० योजन पूर्व, वक्रेश्वर के ४ योजन ईशान, जहन्वी के ४ योजन पश्चिम, उत्तर वाहिनी द्वारीका नदी के पूर्व, देवी सति का उर्ध नयन तारा अर्थात ज्ञान रुपि तृतीय नेत्र गिरा है। वहाँ पन्च मुण्डी आसन बना कर साधना करो। पन्च मुण्डी का अर्थ है दुर्घटना या आकाल मृत्यु को प्राप्त मनुष्य, कृष्ण सर्प, लंगुर, हाथी और उल्लू की खोपडी से बना हुअ आसन। वहाँ देवी तारा माँ के चरण चिन्ह अंकित है। उस स्थान पर देवी माँ के मन्त्र का ३ लाख जप करो और पन्चमकार विधि अर्थात मदिरा, माँस, मतस्य, मुद्रा तथा मैथुन से पूजा करो। तब तुम्हें देवी माँ की कृपा प्राप्त होगी।
वशिष्ठ मुनि ने बुद्ध के बताए विधि से पन्च मुण्डी आसन का निर्माण किया। फिर देवी अराधना की। फ़लस्वरुप उन्हें देवी माँ ने एक अत्यंत उज्जवल ज्योति के रुप में दर्शन दिया और पूछा कि तुम किस रुप में मेरा साक्षात दर्शन करना चाहते हो। वशिष्ठ मुनि ने उन्हें जगत जननी के रुप में देखने की कामना की।
तब देवी माँ ने वशिष्ठ मुनि को भगवान शिव को बालक रुप में अपना स्तन पान करते हुये दर्शन दिया। देवी माँ ने वशिष्ठ मुनि से वर मांगने के लिये कहा। वशिष्ठ मुनि ने उत्तर दिया –” आपका दर्शन मेरे लिये सब कुछ है। आप अगर कुछ देना चाहती है तो यह वर दिजिये कि आज के बाद इस आसन पर कोई भी साधक, आप के मन्त्रों का ३ लाख जप कर सिद्धी प्राप्त कर सके।” देवी माँ ने वशिष्ठ को कामनानुसार वर प्रदन किया। माँ तारा ने अपने भगवान शिव को बालक रुप में स्तन पान कराते स्वरूप को शिला में परिवर्तित कर दिय तथा वहीं पर निवास करने लगीं।
4) यह किवदंती तारापीठ के आलौकिक मंदिर के स्थापना से संबन्धित है। लगभग १२०० साल पहले देवी माँ के स्थान की पहचान जय दत्त नाम के एक व्यापारी ने किया। जय दत्त अपने पुत्र और साथियों के साथ द्वारका नदी के जल पथ से व्यापार कर लौट रहा था। खाने-पीने का सामान लेने के लिए उन्होंने द्वारिका नदी किनारे, देवी माँ के निवास स्थान पर नाव रोका।
दुर्भाग्यवश वहाँ जय दत्त के पुत्र की सांप काटने से मृत्यु हो गई। दुखी जय दत्त पुत्र के शव नाव पर रख शोक में डूब गया। उसके विलाप को सुनकर देवी ने नाव की खिड़की से जय दत्त से पूछा -” क्यों रो रहे हो? इस नाव में क्या हैं?” पुत्र मृत्यु से शोकाकुल जय दत्त ने बेसुधी में कह दिया- नाव में भस्म भरा पड़ा हैं। तत्काल नाव का सारा सामान राख़ में बदल गया। इस दौरान एक अन्य चमत्कार भी हुआ। उसके साथी नाविकों ने भोजन के लिए पास के तालाब से शोल मछली पकड़ी। उन्होंने उसे काट कर धोने के लिए तालाब के जल में डुबाया। कटी हुई मच्छली अपने आप जुड कर जिवित हो कर तालाब में छलांग लगाकर भाग गई। नाविकों ने जय दत्त को यह अद्भुत घटना सुनाई। तब जय दत्त ने पुत्र के शव को उस तालाब में डाला। चमत्कारिक रूप से वह जीवित हो गया।
सब समझ गये कि इस स्थान पर अवश्य ही कोई आलौकिक शक्ति है। जय दत्त ने उस स्थान पर रह कर उस आलौकिक शक्ति को जानने का प्रण कर लिया। उसने अपने पुत्र सहित कर्मिको को घर लौटा दिया। जय दत्त भक्तिभाव से उस आलौकिक शक्ति को ढूँढने लगा। उसकी भक्ति और पागलपन देख भैरव शिव ने उन्हे दर्शन दिये और उस स्थान से सम्बन्धित समस्त गाथायें सुनाई और उन्हे देवी के मन्त्रों की दिक्षा दी। जय दत्त ने तालाब अर्थात जिवित कुण्ड के किनारे देवी माँ का भव्य मन्दिर बनवाया और शिला मुर्ति को उस मन्दिर में स्थपित कर दैनिक पूजा का प्रबंध किया।
मान्यता है कि देवी शिला मुर्ति के रुप में सभी को दर्शन नही देना चाहती थी। अतः उन्होने एक अन्य आवरण या राजवेश भी उपलब्ध करवाया। यह राजवेश देवी का सौम्य रूप है। माँ ने कहा कि शिला मुर्ति को प्रतिदिन से आवरण से ढक दिया जाये। जय दत्त ने देवी माँ के बताये अनुसार मन्दिर का निर्माण करवाया। जिस दिन मन्दिर महा पूजा के साथ सभी भक्तों के लिये खोला गया। जय दत्त ने देखा उस शिला मुर्ति के साथ एक अन्य, देवी माँ का भव्य स्वरुप या राजवेश वहाँ पर है। आज भी देवी माँ के बतये हुये क्रम और विधि के अनुसार पूजा अराधना और पशु बली होती है तथा देवी के निर्देशानुसार राजवेश को मूर्ति पर धारण कराया जाता है। माँ तारा के दर्शन के बाद मस्तक श्रद्धा से नत हो जाता है और मन में मंत्र गुंजने लगता है-
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