चाँद

चाँद, कई बार तुम आइने से लगते हो।

जिसमें अक्स झलक रहा हो अपना।

तुम्हारी तरह हीं अकेले,

अधूरे-पूरे और सुख-दुःख के सफ़र में,

दिल में कई राज़ छुपाए,

अँधेरे में दमकते,

अपने पूरे होने के आस में रौशन हैं।

14 thoughts on “चाँद

    1. बिलकुल। थोड़े दिनों पहले एक कविता में मैंने यह लिखा है। पर गगन में चाँद तो एक हीं है ना?
      धन्यवाद अपने विचार share करने के लिए।

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      1. बिलकुल वही पहचान है। अकेला चाँद हौसला अफ़ज़ाई या तन्हाई को सुकून की तरह से देखना सिखाता है। यह मेरा नज़रिया है। शुक्रिया।

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