एकांत
वह नशा है,
जिसकी लत लगे,
तो छूटती नहीं।
भीड़ तो वह कोलाहल है,
जो बिना भाव
मिलती है हर जगह।
एकांत
वह नशा है,
जिसकी लत लगे,
तो छूटती नहीं।
भीड़ तो वह कोलाहल है,
जो बिना भाव
मिलती है हर जगह।
इस दुनिया के मेले में,
लोगों को खोने से
परेशान न हो।
सब को खुश करने की
कोशिश में ,
रोज़ एक मौत ना मरो।
एक बात सीख लो!
खुद को खो कर खोजने और
संभलने में परेशानी बहुत है।
कहते हैं,
बुरा हो या भला हो,
हर वक्त गुजर जाता है।
पर कुछ वक्त कभी मरते नहीं,
कभी गुजरते नहीं।
जागते-सोते ख़्वाबों ख़्यालों में
कहीं ना कहीं,
शामिल रहते हैं।
ज़िंदगी का हिस्सा बन कर।
ऐसा भी क्या जीना?
पूरी ज़िंदगी साथ गुज़र गई।
पर ना अपने आप से बात हुई,
ना तन की रूह से मुलाक़ात हुई।
दीया
हर दीया की होती है,
अपनी कहानी।
कभी जलता है दीवाली में,
कभी दहलीज़ पर है जलता,
गुजरे हुए की याद का दीया
या चराग़ हो महफ़िल का
या हो मंदिर का।
हवा का हर झोंका डराता है, काँपते लहराते एक रात जलना और ख़त्म हो जाना,
है इनकी ज़िंदगी।
फिर भी रोशन कर जाते है जहाँ।
चढ़ते सूरज के कई हैं उपासक,
पर वह है डूबता अकेला।
जलते शोले सा तपता आफ़ताब हर रोज़ डूबता है
फिर लौट आने को।
इक रोज़ आफ़ताब से पूछा –
रोज़ डूबते हो ,
फिर अगले रोज़
क्यों निकल आते हो?
कहा आफ़ताब ने –
इस इंतज़ार में,
कभी तो कोई डूबने से
बचाने आएगा।
ज़िंदगी वह आईना है,
जिसमें अक्स
पल पल बदलता है।
इसलिए वही करो
जो देख सको।
दिल पर लगे चोट,
अक्सर खामोशियों
के घाव दे जातें हैं।