ज़िन्दगी के रंग – 213

जो बनते रहें हैं अपने.

कहते हैं पहचान नहीं पाए तुम्हें !

आँखों पर गुमान की पट्टी ऐसी हीं होती है.

अच्छा है अगर लोंग पहले पहचान लें  ख़ुद को।

ज़िंदगी के राहों में,

हम ने बख़ूबी पहचान लिया इन्हें!

 

19 thoughts on “ज़िन्दगी के रंग – 213

  1. बिल्कुल ठीक कहा रेखा जी आपने । एक शेर याद आया :
    नेक ने तो नेक जाना, बद ने बद जाना मुझे
    हर किसी ने अपने ही रुतबे में पहचाना मुझे

    Liked by 3 people

Leave a reply to Rekha Sahay Cancel reply